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-५७.३०.१४]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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३०
एहउ भवसंबंधु वियारिउ एत्थु केण किर को णउ मारिउ । म करहि तुहुं जिणधम्मविरुद्धउं णियमहि हियवउ रोसाइद्धउं । तं णिसुणिवि पडिजंपइ उरयरु तुह वयणेण ण मारमि खेयरु । पइं जिणमग्गु मज्झु वजरियउ भवकहमि पडंतु उद्धरियउ । तइ वि साहु उवसम्गणिरंभणु लइ कीरइ खलदप्पणिसुंभणु । एयहु कुलि सिझंतु म विजउ पुरिसह दुद्धरविहुरसहेजउं । णारिहिं सिज्झिहिंति णियमालइ संजयंतपडिमापयमूलइ। मागहमंडलकुवलयचंदङ
इंदभूइ पुणु कहइ णरिंदहु । हिरिबंधणि पयणियखयरिंदहु णामु करिवि हिरिमंतु गिरिंदहु । मुइवि णिबद्धवइरबंदिग्गहु लहु णीसल्लु चविवि सपरिग्गहु। गउ फणि संजयंतु मुणि वंदिवि रविआहउ सुरकश अहिणंदिवि । सुरु जाइवि सुहि संठिउ लंतवि आउमाणि वोलीणि सउच्छवि । घत्ता-इह भरहखेत्ति उत्तरमहुरि पुरि अणंतवीरिउ णिवइ॥
__ लायण्णरूवसोहग्गणिहि णारि मेरुमालिणिय सइ ॥३०॥
३० यह संसार-सम्बन्ध विदारित हो गया। यहां किसके द्वारा कौन नहीं मारा गया। इसलिए तुम जिनधर्मके विरुद्ध आचरण मत करो, रोषसे भरे हुए अपने मनका नियमन करो। यह सुनकर अजगर उत्तर देता है कि तुम्हारे शब्दोंसे मैं इस विद्याधरको नहीं मारूंगा। तुमने मुझे जिनमार्ग बताया है। संसारकी कीचड़में डूबते हुए मेरा उद्धार किया है। तो भी उपसर्गका रोकना जरूरी है । लो, इस दुष्टके दर्पका विनाश किया जाता है। इसके कुलमें विद्या सिद्ध नहीं होगी। इसके कुलमें लोगोंके कठोर दुःख सहन करना होगा। परन्त स्त्रियाँ नियमके घर संजयन्त मुनिकी प्रतिमाके चरणोंमें विद्या सिद्ध करेंगी। मागधरूपी मण्डलके कुलचन्द्र इन्द्रभूति गणधर पुनः राजा श्रेणिकसे कहते हैं कि विद्याधरोंको लज्जाके बन्धनमें रखनेके कारण, पहाड़का नाम होमन्त रखकर तथा बाँधे हुए शत्रसमहके बंधनोंको मुक्त कर, तुम निःशल्य रहो-यह कहकर अपने परिग्रहके साथ संजयन्त मुनिको वन्दना कर, दिवाकर देवका अभिनन्दन कर धरणेन्द्र चला गया। सज्जन देव जाकर लान्तव स्वर्गमें स्थित हो गया। उत्सवोंके साथ आयुका मान समाप्त होनेपर
पत्ता-इस भरतक्षेत्रको उत्तर मथुरा नगरीमें अनन्तवीर्य राजा था, उसकी लावण्यरूप और सौभाग्यको निधि मेरुमालिनी नामकी सती स्त्री थी ॥३०॥
३०. १. AP उवसग्गु । २. AP°दप्पणणिसुंभणि । ३. A सिज्जंतु । A ४. दुद्धरु विहुर; P दुद्धरि विहुरि ।
५. A हरिवणि पयलिय; P हिरिबद्धणि पयलिय ।
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