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महापुराण
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बंधिवि तित्थंकरणांमगोत्तु सो पंसंदणु वरिंदु बावीस महोव हिपरिमियाउ पुप्फंतरपवर विमाणवासि बावीस पक्aहिं कहिं वि ससइ जाणवि तेत्तियहिं जि वच्छरेहिं अवही रूविवित्थारु ताम किं वण्णमि सुरवइ सुक्कलेसु जयहुं तहहुं धम्मोवयारि इह भरहखेत्ति साकेयणाहु
संणा मुजइव पवित्तु । सोलह मइ दिवि हूयउ सुरिंदु | तिकरद्धपाणिपरिमाणु काउ । तणुतेओहामियदुद्धरासि । हियएण देउ आहारु गसइ । सेविज्जइ अमरहिं अच्छरेहिं । पेच्छ छरयंतु जार्म । तहुँ जीविउ थिउ छम्माससेसु । वज्जर कुबेर कुलिसधारि । पहु सीह सेणु थिरथरबाहु । जयसामासुंदरिसामिसालु ।
इक्खा
कुरारकालु
घत्ता - लहु एयहुं दिणयरतेयहुं करहि धणय पुरवरु घरु ॥ पडिच्छिवि चलिड जक्खु पंजलियरु ||३||
तं इच्छिवि सिरिण
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उझाउरि केणएं कहिं वि पीय कत्थइ हरिणीलमणीहिं काल
कत्थइ ससियंत जलेहिं सीय । महिलि विडिय मेहमाल ।
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[ ५८. ३. १
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तीर्थंकर नाम- गोत्रका बन्ध कर वह पवित्र मुनिवर मृत्युको प्राप्त हुए। वह पद्मरथ श्रेष्ठ राजा सोलहवें स्वर्ग में राजा हुआ । उसकी आयु बाईस सागर प्रमाण थी । साढ़े तीन हाथ ऊँचा उसका शरीर था । वह पुष्पोत्तर विमानका निवासी था, अपने शरीरके तेजसे दुग्धराशिको तिरस्कृत करनेवाला था । बाईस पक्षमें कभी सांस लेता था और उतने ही वर्षोंमें जानकर मनसे वह 'देव आहार ग्रहण करता था। वह देवों और अप्सराओंके द्वारा सेवनीय था । अवधिज्ञान के द्वारा छठे नरकके अन्त तक जहाँ तक रूपका विस्तार है, वहीं तक वह देखता था । शुक्ललेश्यावाले उस देववरका में क्या वर्णन करूं ? जब उसका जीवन छह मास शेष रह गया तो धर्मका उपकार करनेवाला इन्द्र कुबेर से कहता है कि इस भरतक्षेत्रके अयोध्या नगर में स्थिर और स्थूल बाहुवाला साकेतका राजा सिंहसेन है । वह इक्ष्वाकुवंशीय क्रूर शत्रुके लिए कालके समान, जयश्यामा सुन्दरीका स्वामी श्रेष्ठ है ।
घत्ता - दिनकर के समान तेजवाले इनके लिए हे कुबेर, तुम पुरवर और घर बनाओ । उसे अपने सिरसे चाहकर और स्वीकार कर कुबेर हाथ जोड़कर चला ॥३॥
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वह अयोध्या नगरी कहीं स्वर्णसे पोली और कहीं चन्द्रकान्त मणियोंसे शीतल है। कहीं ३. १. Aणामु; P° नाउं । २. AP मुखउ । ३. A तिकरद्धपाणिपरिमाणकाउ; P तिकरुह्यणियपरिमाणकाउ । ४. AP पुप्फुत्तरं । ५. AP °विवाण । ६. A रूउ विया । ७. A जाम । ९. A जीविउ तहु । १०. A वंसकुरारि ।
८. ताम ।
४. १. AP कणयं ।
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