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महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-हयधंतहु गुणवंतहु अणिमिसकेउकयंतहु ॥
भयपंतहु अरहतहु पणविवि पयई अणंतहुं ॥१॥
पुणु कह मि कहाणउँ कामहार तहु केर सांसयसोक्खकारि। धादइसंडहु पच्छिमादिसाइ वित्थिणेि मेरुपुन्विल्लभाई।। परिहापाणियपरिभैमियमयरि मणितोरणवंति अरिट्ठणयरि।' पउमावल्लहु पउमरहु राउ तहु एक्कु दिवसु जायउ विराउ । आणियसंमाणियदुजणाइ
णीणियअवमाणियसज्जणाइ । अविणीयइ धणमयदेभलाइ. पवणाहयतणजललवचलाइ। बहुकवडंडविडणिवरंजियाइ भंगुरभावेणं लंजियाइ। महिवइलच्छिइ एयइ खलाइ मणवारणबंधणसंखलाइ । बद्धउ हउं णिवसमि एत्थु काई अणुसरमि सत्ततञ्चाई ताई। सिरि ढोय॑मि तणयह घणरहासु संसारइ सरणु ण को वि कासु। इय चिंतिवि पासि सयंपहासु वउ लइयउ छिंदिवि मोहपासु।
घत्ता-अविहंगई धरिवि सुयंगई एयारह जिणदिट्टइं ।
__ कयवसणइं इंदियपिसुणई जिणिवि पंच दप्पिट्टई ।।२।।
घत्ता-ऐसे अन्धकारको नष्ट करनेवाले, गुणवान्, कामके लिए यम, ज्ञानवान् अनन्तनाथ अरहन्तके चरणोंको प्रणाम करता हूँ ॥१॥
और फिर कामको नाश करनेवाली उनकी शाश्वत सुख देनेवाली कथाको कहता हूँ। घातकीखण्डकी पश्चिम दिशामें विस्तीर्ण मेरुके पूर्वभागमें अरिष्ट नगर है, जिसके परिखाजलमें मगर परिभ्रमण करते हैं और जो मणितोरणोंसे युक्त है। उसमें पद्मादेवीका प्रिय राजा पद्मरथ था। उसे एक दिन विराग हो गया। जिसमें दुर्जनोंको लाया और सम्मानित किया जाता है, तथा सज्जनोंको निकाला और अपमानित किया जाता है, जो अविनीत और धनके मदसे विह्वल है, जो पवनसे आहत तृण और जलकणोंको तरह चंचल है, जो अत्यन्त कपटपूर्ण दृढविटोंसे राजाका रंजन करती है, जो अपने कुटिलभावसे दासीके समान है, मनरूपी हाथीको बांधनेके लिए शृंखलाके समान है, ऐसी इस दुष्ट राज्यलक्ष्मीसे बंधा हुआ मैं यहां क्यों निवास करता हूँ, मैं उन सात तत्त्वोंका अनुसरण करता हूँ। अपने पुत्र धनरथको वह लक्ष्मी देता हूँ। संसारमें कोई किसीकी शरण नहीं है। यह विचार कर उसने स्वयंप्रभ मुनिके पास जाकर मोहरूपी बन्धनको काटनेके लिए व्रत ग्रहण कर लिया।
पत्ता-जिनके द्वारा उपदिष्ट ग्यारह श्रुतांगोंको धारण कर और दुःख उत्पन्न करनेवाले दर्पिष्ट इन्द्रियरूपी दुष्टोंको जीतकर-॥२॥
१०. A भयवंतह गुण । ११. A हयवंतहु अरं। २. १. AP पावहारि । २. A विस्थिण्णमेरु । ३. A भावि । ४. A°वाणिय । ५. P°परिसमियं ।
६. AP दिवसि । ७. A कवडणिविडमइरंजियाइ; P कवडणिविडरंजियाइ। ८. P ढोइवि।
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