Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 356
________________ ३०९ -५७. २३.५] महाकवि पुष्पदन्त विरचित आयउ जिणगुणगेणु सुयरंतउ पवरुवरिमगेवजहि होतउ। सीहचंदु णं हुस कुसुमाहु सुंदरिदेविहि सुउ चक्काउहु । चित्तमाल तहु पियरायाणी णं मयरद्धयबाणणिसेणी। ताहं बिहिं मि णं पुण्णविहायउ अक्कप्पड सुरु तणुरुहु जायउ । जो चिरु रस्सिवेउ अजयरहउ एहुँ जि सो णरंजम्मसमागउ । णामें वज्जाउहु जयलंपडु समरंगणि पल्हत्थियगयघडु। पुहई तिलइ णयरि रवितेयहु पियकारिणिदइयहु मइवेयहु । सिरिहर काविट्ठहु पन्भट्ठी रयणमाल सुय हूई दिट्ठी। दिण्णी कुलिसाउहहु सेणेहें पुणु पवहंते कालपवाहें। घत्ता-कीलंतहं पेम्मपरव्वसह ताहं तेत्थु पयडियपणउ ।। सा जसहर सग्गहु ओयरिवि रयणाउहु हूई तणउ ॥२२॥ २३ पिहियासउ णवेवि अवराइउ तउ चरंतु संतत्तु पराइउ । रज्जु करेवि सुइरु चक्काउहु गउ तायहु जि सरणु वियसियमुहु । तेण कयउं भीसणु वम्महरणु चरमदेहु जाणइ विहि विहरणु । दुरुज्झियपरमहिलापरधणु सिरि मुंजिवि तेत्तिउ' पविपहरणु । दसणणाण,रित्ति अभंतउ बप्पहु पासि पुत्तु णिक्खंतउ । होकर चक्रपुरमें विजयरूपी लक्ष्मीके सहायक न्यायवान् अपराजित राजाकी पत्नी सुन्दरी देवीका चक्रायुध नामका पुत्र हुआ, जो मानो कामदेव था। चित्रमाला उसकी प्रिय रानी थी, जो मानो कामदेवके बाणोंकी नसैनी थी। उन दोनोंसे सूर्यप्रभ देव पुण्यविभागकी तरह उत्पन्न हुआ। तथा अजगरसे आहत जो पुराना रश्मिवेग था, वही मनुष्य जन्ममें आया हुआ विजयका लम्पट वज्रायुध है, जो युद्धके प्रांगणमें गजघटाको धराशायी कर देता है। जिसका तेज सूर्यके समान है ऐसे प्रियकारिणीके पति मतिवेगसे पृथ्वीतिलक नगरमें कापिष्ठ स्वर्गसे च्युत होकर श्रीधरा रत्नमाला नामकी कन्या होते हुए देखी गयो। वह वच्चायुधको दी गयी। फिर कालप्रवाहके बहनेपर धत्ता-जिसने विनय प्रकट की है, ऐसी वह यशोधरा स्वर्गसे अवतरित होकर क्रीड़ा करते हुए और प्रेमके वशीभूत उन दोनों ( वज्रायुध और रत्नमाला ) के रत्नायुध नामसे उत्पन्न हुई ॥२२॥ २३ अपराजित पिहितास्रवको नमस्कार कर तपका आचरण करते हुए शान्तिको प्राप्त हुए। चक्रायुध भी बहुत समय तक वहां राज्य कर, विकसित मुख वह भी अपने पिताकी शरणमें चला गया। उसने भीषण तप किया। चरम शरीरी वह चारित्रको जानता था। जिसने परस्त्री और परधन छोड़ दिया है ऐसे वज्रायुध भी उतनी ही लक्ष्मीका भोगकर तथा दर्शन-ज्ञान और २२. १. A गुणगुण । २. A पुण्णणिहायउ । ३. A एह जो सो। ४. AP णरजम्मि समागउ । ५. AP पियकारणे । ६. P सणाहें। ७. A पयलियपणउ । २३. १. A तित्तिउ; P तित्तउ । २. P°चरित्तहं भत्तउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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