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-५७. २०.१२]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
३०७
दिण्णी पिउणा दरिसियणामहु अलयाणाहहु वढियकामहु । पत्ता-सो पुण्णयंदु दिवि देवसुहं माणिवि हर्यविहलत्तणउं ।
णियकम्मविवाएं णिवडियउ पुणु पत्तउ महिलत्तणउं ॥१९॥
२०
दरिसियराएं हूई दुहहर सिरिहराहि सुय णामें जसहर । दिण्णी ताएं कामासत्तहु
दिणयराहपुरि सूरावत्तहु । सीहसेणु करि सिरिहरु भणियउ जो सो एयहिं दोहिं मि जणियउ । रस्सिवेउ गंदणु संमाणिवि सिरि ढोइवि सिरिकलसहिं हाणिवि । औदरिसेण पासि हयदंदहु लइयउ वउ जइयहु मुँणियंदहु । तइयहुँ सिरिजसहरउ विणीयउ पावइयउ तहिं मायाधीयउ । मुणिचरणारविंदरइमइयहि पासु वसंतियाहिं गुणमइयहि । . पवणुङ्ख्यधवलधयमालउं सिद्धसिहरु णामेण जिणालउं । थावरजंगमविरइयमेत्तिइ
किरणवेउ गउ वंदणहत्तिइ । तहिं हरिचंदु भडारउ पेक्खिवि थिउ अप्पउ रिसिदिक्खइ दिक्खिवि। १० पत्ता-सो आयहिं सिरिहरजसहरहिं दोहिं वि गिरिगरुयंगु गुणि ॥
गुहहरि णिसण्णु णिरिक्खियउ पलियंकेण णिसण्ण मणि ॥२०॥
करवाली श्रीधरा नामकी कन्या हुई। पिताने उसे, जिसकी कामनाएं बढ़ी हुई हैं ऐसे अलकापुरीके राजाको दे दिया।
घत्ता-वह पूर्णचन्द्र स्वर्गमें देवसुख मानकर, च्युत होकर अपने कर्मविपाकसे जिसने दारिद्रयको नष्ट कर दिया है, ऐसे स्त्रीत्वको पुनः प्राप्त हुआ ॥१९॥
२० · वह राजा दर्शकसे श्रीधरा रानीको दुःखहरण करनेवाली यशोधरा नामको कन्या हुई । वह सूर्याभपुर (पुष्करपुर.) के काममें आसक्त राजा सूर्यावतको दी गयी। जो सिंहसेन (राजा) श्रीधर कहा गया, वह इन दोनोंसे रश्मिवेग नामका पुत्र हुआ। रश्मिवेगका सम्मान कर, उसे सिरपर उठाकर एवं श्रीकलशोंसे अभिषेक कर राजा दर्शकने द्वन्द्रोंका नाश करनेवाले पास जब संन्यास ले लिया, तो माँ और बेटी विनीता श्रीधरा और यशोधराने भी मुनियोंके चरणारविन्दमें जिनकी बुद्धि तीव्र है, ऐसी गुणमती वसन्तिका आर्यिकाके पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। जिसपर पवनसे धवल ध्वजमालाएं आन्दोलित हैं ऐसा सिद्ध शिखर नामका जिनालय था। स्थावर और जंगम प्राणियोंके प्रति जिसमें मित्रताका भाव है ऐसी वन्दनाभक्तिके लिए रश्मिवेग वहाँ गया। वहां आदरणीय हरिश्चन्दको देखकर वह स्वयं मुनिदीक्षा लेकर स्थित हो गया।
पत्ता-गिरिकी तरह अत्यन्त ऊँचे तथा पर्यकासनमें आसीन गिरिगुहामें बैठे हुए उन मुनिको इन दोनों श्रीधरा और यशोधराने देखा ॥२०॥
६. A विहवविहत्तणउं । २०. १. P सिरहरु । २. A आदरसेण । ३. P हयदंडहु । ४. AP मुणिचंदहु । ५. A°कुहरणिसण्णु ।
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