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-५७. १८.२]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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१७ . गयमोत्तियइं दंतजुयसहियई वणि सिगालभिल्ले संगहियई । वणिय सत्थवाहहु हिमवण्णई पुरसेट्ठिहि धणमित्तहु दिण्णई। सीहसेणतणयहु जसधामहु धणमित्तण वि छणससिणामहु। कारिय तेण तमीयरकंतिर्हि णियमंचयहु पाय गयदंतहिं । णियसीमंतिणियहि रुइरिद्धई मोत्तियाई कोडग्गि णिबद्धइं। हो केत्तिउ संसार कहिज्जइ जं चिंतंतहं मइ दुम्मिज्जइ। मोहमहंतइ णिहइ मुत्तउ
अच्छइ सुहि णं मुच्छिउ सुत्तउ । जाहि अम्मि तुह वयणे जग्गइ पुण्णयंदु जिणधम्महु लग्गइ। णियणंदणमुणिवरवयणुल्लउ तं आयण्णिवि सवणसुहिल्लउ । गय मायरि तहिं जहिं तं पट्टणु जहिं सो राणउ वइरिविहट्टणु । घत्ता-पणवंतहु पुत्तहु परियणहु अर्जइ सुमहुरु साहियां ।
जिह राएं जाएं मयगलिण णिज्जणु गहणु पसाहियउं ॥१७||
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जं धणमित्ते आणिउ आयउ तं दियमुसलजुवलु तहु केरउ
पल्लंकहं पयजोग्गउ जायउ । मुत्ताहलणिउरुबउ सारउ ।
१७ वनमें शृगाल नामक भीलने दोनों दांतोंके साथ गजमोतियोंका संग्रह कर लिया और वणिक सार्थवाह नगर सेठ धनमित्रको सफेद रंगके मोती और हाथीदांत दे दिये। धनमित्रने भी वे सिंहचन्द्रके पुत्र यशके घर पूर्णचन्द्रको दे दिये। उसने भी चन्द्रमाके समान कान्तिवाले गजदन्तोंसे अपने पलंगके पाये बनवा लिये तथा कान्तिसे समृद्ध मोतियोंको अपनी पत्नीके गले में लगा दिये। अरे संसारका कितना कथन किया जाये ? जिसका चिन्तन करते हुए बुद्धि पीड़ित हो उठती है ? मोहको महान् निद्रासे भुक्त सुधीजन स्थित है, मानो मूच्छित या सोया हुआ हो। हे मां, तुम जाओ। तुम्हारे वचनोंसे पूर्णचन्द्र जागेगा और जिनधर्मसे लगेगा। अपने पुत्र मुनिवरके कानोंको सुखद लगनेवाले वचन सुनकर वह माता वहां गयी जहां वह नगर था और जहां शत्रुओंका नाश करनेवाला वह राजा था।
पत्ता-प्रणाम करते हुए पुत्र और परिजनसे आर्यिकाने सुमधुर वाणीमें कहा कि किस प्रकार राजाने मैगल गजके रूपमें गहन वनका सेवन किया ॥१७॥
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जो धनमित्रने लाकर दिया और जो पलंगके पाये बने वह हाथीके दोनों दांतरूपी मूसल हैं तथा श्रेष्ठ मुक्ताफल समूह उसका (गजका ) है जिसे तुम प्रणयिनीके गले में देखते हो। हे पुत्र, तुम श्रावक व्रतोंका पालन करो। हे पुत्र, यह संसार बड़ा विचित्र है। हे पुत्र, राजा भी कर्मरत १७. १. AP सिंगालभिल्लें गहियई । २. A सीमंतिणिपहरुहरिद्धई। ३. AP कंठग्गि । ४. A मुच्छियसुत्तउ ।
५. A पुण्णइंदु । ६. A अज्जिए । ७. A णिज्जणगहणु ।
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