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महापुराण
[ ५७. २१.१
२१ वंदिवि खरतवतावें खीणउ ताउ तासु णियडइ आसीणउ । छुडु कम्मक्खयवयणु पयच्छिउ - रयणत्तयहु कुसलु फुड पुच्छिउ । ता सो तंबचुलफणि णारउ णरयहु णीसरेवि हिंसारउ । दीहु कालु संसोरु सरेप्पिणु अण्णण्णई अंगाई धरेप्पिणु । जायउ अजयरु विसमखयालइ फुल्लियबउलकलंबतमालइ । मुहविससिहिमसिकयसारंगउ मोडियविडवुवियविहंगउ । फर्णताडणफोडियधरणीयलु वयणरंधघल्लियवर्णमयगलु । वइवसदंडु चंडु अवलोइवि खणि आहारु सरीरु पमाइवि । मरणि वि धीरत्तेण ण मुकई तिण्णि वि पावइयई थिरु थर्कई । अहिणा दृढदाढहिं णिहलियई कसमसंति चावंतें गिलियई। हेमणिवासविसेसवरिहा उप्पण्णई मरेवि काविट्ठइ। पत्ता-तहिं रुययविमाणि मणोरमणि जायउ अमरु वरंकपहु॥ सो अजयरु चोत्थइ गरयबिलि णिवडिउ मुणिवररइयवहु ॥२१॥
२२ चक्कउरइ जयलच्छिसहायहु . जयवंतहु अवराइयरायहु ।
तीव्र तपतापसे क्षीण उन मुनिकी वन्दना कर वे उसके निकट बेठ गयीं। शीघ्र ही उसने 'कर्मक्षय हो' ये शब्द कहे तथा रत्नत्रयको कुशलताका प्रश्न पूछा। तब वह हिंसारत नारकी कुक्कुट सर्प नरकसे निकलकर लम्बे समय तक संसारमें परिभ्रमण कर, भिन्न-भिन्न शरीरको धारण करता हुआ, जिसमें बकुल-कदम्ब और तमाल वृक्ष खिले हुए हैं ऐसे विषम क्षयकाल वनमें अजगर हो गया। जिसने अपने मुखकी विषज्वालासे हरिणोंको काला कर दिया है, जिसने वृक्षोंको मोड़ दिया और पक्षियोंको उड़ा दिया है, अपने फनोंकी मारसे धरणीतलको फोड दिया है, जिसने अपने मुखरन्ध्रमें वनके मैगल गजोंको डाल लिया है, ऐसे यमके दण्डकी तरह प्रचण्ड उसे देखकर तथा एक क्षणमें शरीरके आहारको कल्पना कर, परन्तु उन लोगोंने मरणमें भी धीरत्वको नहीं छोड़ा। वे तीनों संन्यास लेकर स्थित हो गये। अजगरने अपनी मजबूत दाढ़ोंसे उन्हें निर्दलित कर दिया और कसमसाते हुए उन्हें चबाकर निगल लिया। वे लोग हेमनिवास विशेषसे वरिष्ठ कापिस्थ स्वर्गमें मरकर उत्पन्न हुए।
पत्ता-वहाँ सुन्दर रूप्यक विमानमें सूर्यप्रभ देव हुआ। मुनिवरका वध करनेवाला वह अजगर चौथे नरकमें गया ॥२१॥
२२
जिन भगवान्के गुणगणका स्मरण करता हुआ वह सिंहचन्द्र श्रेष्ठ उपग्मिग्रेवेयकसे अवतरित २१. १. AP तंबचूलु । २. P संसारि। ३. AP°सिहिसिहहयसारंगउ । ४. A फलताडणं । ५. P
वणयरपलु। ६. A मुक्कउ । ७. P पव्वइयई थक्कई। ८. A थक्कउ। ९. A उप्पण्णाई। १०. अमरवरंकपह।
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