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महापुराण
[५७. ११.१
भीम अगंधणकुलि संभूयउ णं जमपासउ णं जमदूयउ। सिसुससिसरिसेविसमदाढाणणु धणणिहिकलसयवलइयणियतणु । कजलकण्हलतंबिरलोयणु कोइलभसलकसणु मरुभोयणु । फुक्करंतु दुम्मुहु अहि अच्छइ दीहरु कालु जाव तहिं गच्छइ। ता राएण रिद्धिपरिउण्णउं मंतित्तणु धम्मिलहु दिण्णउं । असणवणंतरि कंतारायलि धम्मणाममुणिवरपयजुयतलि । सुणिवि धम्मु संसारहु संकिउ भदमित्तु जिणवरदिक्खंकिउ । णियजणणिइ छुहियइ उवलद्धउ गहणि सुमित्तावग्घिइ खद्धउ । मरिवि महाबलु पडिबलमद्दणु मयवइसेणहु जायउ णंदणु । सीहँचंदु पहिलारउ भासिउ पुण्णेयंदु तहु अणुउ पयासिउ । रामयत्त बिहिं पुत्तहिं राहियणं पुण्णिम रेविससिहि पसाहिय । अण्णहिं दिणि कुलकमलदिणेसरु दविणागारु णियंतु गरेसरु । घत्ता-जो सच्चघोसु चिरु मंतिवरु बद्धवहरु हुर सप्पु घरि ॥
तें सिवि डक्कि भीसणिण णउलीयरणु करेवि करि ॥११॥
अगंधण कुलमें पैदा हुआ भीम वह मानो यमका पाश या दूत था। उसका मुख शिशुचन्द्रमाके समान और विषम दाढ़ोंवाला था। धन और निधिकलशोंसे अपने शरीरको लपेटे हुए था। उसके नेत्र कज्जलके समान काले और लाल-लाल थे। वह कोयल-भ्रमरके समान श्याम था। हवा उसका भोजन था। वह दुर्मुख सांप फूत्कार करता हुआ वहाँ रहता है। उसका लम्बा समय वहाँ बीत जाता है। राजाके द्वारा ऋद्धिसे परिपूर्ण मन्त्रिपद धर्मिल ब्राह्मणको दिया गया। असना नामक वनमें विमल कान्तार पर्वतपर धर्म नामक मुनिवरके चरणकमलोंके तलमें धर्म सुनकर भद्रमित्र संसारसे शंकित होकर जिनवरकी दीक्षामें दीक्षित हो गया। वह अपनी भूखी मां सुमित्रा बाघिन द्वारा पा लिया गया और वह उसे खा गयी। वह मरकर सिंहसेनका शत्रुसेनाका मर्दन करनेवाला महाबली पुत्र हुआ। उसमें सिंहचन्द्र पहला कहा गया और दूसरा पूर्णचन्द्र उसका अनुज प्रकाशित हुआ। मां रामदत्ता अपने दोनों पुत्रोंसे शोभित थी, मानो पूर्णिमा सूर्य और चन्द्रमासे प्रसाधित थी। किसी दूसरे दिन कुलकमलका सूर्य अपना कोशालय देख रहा था।
घत्ता-जो सत्यघोष प्राचीन मन्त्रीवर वैर बांधकर घरमें साँप हुआ था, भीषण, उसने रूठकर और हाथमें नकुलीकरण कर उसे काट खाया ॥११॥
११. १. P°सरिससविसवाढा। २. A कज्जलकण्हिरतबिर'; P कज्जलकज्जलतंबिर । ३. A°वग्घिणि
खद्धउ। ४. P सीहचंडु। ५. AP पुण्णचंदु। ६. AP ससिरविहिं । ७. AP णियत्तु । ८. Pतं रूसिवि । ९. AP डंकिउ ।
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