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-५७.५.११ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित
२९५ दुम्मुहु दुहबुद्धि विवरेरउ हणह कुणह जइ मंतु महारउ । ता मणुयहिं मुणिंदु कयरोसहिं ताडिउ उवलहिं दंडसंहासहिं । पत्ता-थिरूं' सत्तु मित्तु समभावि थिउ सुकझाणसंरुद्धमणु ।।
सो खवखवयसेढिहि चडिउ तिणु वि ण मण्णइ णिययतणु ॥४॥
साहु भीमु उवसग्गु सहेप्पिणु तिकलेवरणिबंधु मेल्लेप्पिणु । गउ तहिं जेहिं गउ पुणरवि णावइ मुणिवरलील तिजगि को पावइ । मारिजंतु वि वइरिसमूहें
जे कया वि घिप्पंति ण कोहें । ताहं मि जणु पहरणु किं धारइ जडु अप्पणु अप्पाणउंमारह। सहं देवहिं भवभावणिसुंभइ तहिं णिवाणपुज्जपारंभइ। आयउ सो जयंतु उरजंगउ पेच्छिवि चिरबंधुहि पडियंगउ । फुक्कारुडावियणहयंदे
आरूसेप्पिणु खणि धरणिंदें। माणवणिवहु णिबद्धउ णायहिं दिणिहंउ णीससंतु कसघायहिं । अवरहिं वुत्तु फणिद वियारहि अम्हई काई भडारा मारहि । उक्खयखग्गे मच्छरगाढे
एउं सव्वु विलसिउं तडिदाढे। परियणसयणहिं सहुंथरहरियाउ ताणासंत सत्तु सो धरियउ । आया है। यदि तुम हमारी बात मानते हो तो दुर्मुख, दुष्टबुद्धि, विपरीत इसे बार डालो। तब क्रोध करते हुए मनुष्योंने उन मुनीन्द्रको पत्थरों और हजारों डण्डोंसे ताड़ित किया।
पत्ता-वह मुनि शत्रु-मित्रमें समभाव रखकर स्थित हो गये । शुक्लध्यानमें उन्होंने अपना मन संरुद्ध कर लिया। उस क्षपणक (मुनि)ने क्षपणक श्रेणोपर चढ़कर अपने शरीरको तिनकेके भी बराबर नहीं समझा ॥४॥
वह महासाधु उपसर्गको सहनकर, तीन शरीरके निबन्धनको छोड़कर वहाँ चले गये, जहाँसे जीव फिर लौटकर नहीं आता। तीनों लोकोंमें मुनिवरकी लीलाको कौन पा सकता है ? शत्रुसमूहके द्वारा मारे जाते हुए भी जो कभी भी क्रोधके द्वारा अभिभूत नहीं होते ऐसे मुनियोंके ऊपर जन हथियार क्यों उठाता है ? वह मूर्ख अपनेसे अपनेको मारता है। वहां देवोंके साथ संसारके भावका नाश करनेवाली निर्वाणपूजा प्रारम्भ की गयी। वह जयन्त धरणेन्द्र भी वहां आया । अपने चिरबन्धुके शरीरको पड़ा हुआ देखकर, फूत्कारसे जिसने आकाशके चन्द्रमाको उड़ा दिया है, ऐसे धरणेन्द्रने एक क्षणमें क्रद्ध होकर नागोंसे मानव समहको बांध लिया और श्वास लेते हुए उन्हें कशाघातोंसे मार डाला। दूसरोंने कहा-'हे धरणेन्द्र, विचार करिये । हे आदरणीय, आप हमें क्यों मारते हैं ? जिसने तलवार उठा रखी है तथा जिसमें प्रगाढ़ मत्सर है, ऐसे विद्युदंष्ट्रने यह सब चेष्टा की है।" तब परिजनों और स्वजनोंके साथ थर-थर कांपते और भागते हुए शत्रुको उसने पकड़ लिया।
७. P कुणाह। ८. A दुट्ठसहासहिं । ९. AP थिउ । १०. AP खवगसे ढिहि । ५.१. A मलेप्पिणु । २. AP जहिं सो गउ पुणु णावह । ३. A मोहें। ४. AP अम्पाण अप्पुण । ५. AP
उरजंगम् । ६. A वणि हउ ।
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