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महापुराण
[ ४२. ४.६
ताराणाहं वासरणाह
झसजुयलं तडिजुयलगुणाहं । कलसजुयं मंगलकुलणाहं
कमलसरं कीलियकरिणाहं । तुगतरंगं तीरिणिणाहं
वइसणयं च ससावयणाहं । गेहं सुवसियसुरवरणाहं
अवरं पवरं थियफणिणाहं । रयणगणं विम्हियेधणणाह
दीहसिहालं साहाणाहं। इय दैट्टुं पुच्छइ णियेणाह जाया अन्ज दिट्ठसिविणाहं । भो सोलहपुरिल्लगयणाहो ताणं कहसु फलं मइ गाहो। तं णिसुणिवि पभणइ णेरणाहो. होही पुत्तो तुह जगणाहो ।
"सवण्हं सविदसमच्चो देवो गहुसो भण्णइ मच्चो। १५ हूए हरिभणणे हिरवजे
सइसरीरपक्खालणकज्जे । आया देवी हिरि सिरि कंती लच्छी बुद्धी दिहि'मइ कित्ती । धत्ता-अणवइण्णि अरुहे पहिलउ जि जाम छम्मासि ॥
__ ताम धणाहि वेण धणधारहिं नृवघरि वरिसिउं ॥४।।
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णीलियदिसावणइ मासम्मि सावणइ। तहिं सुद्धबीयाइ
दूरं विणीयाइ। प्रसन्न करनेवाली पद्मा. ( लक्ष्मी), गनगनाते हुए भ्रमरोंसे यक्त पुष्पमाला.तारानाथ (चन्द्रमा) वासरनाथ ( सूर्य ); विद्युत्युगलकी तरह मत्स्ययुगल, मंगलकुलका स्वामी कलशयुगल; जिसमें गजनाथ क्रीड़ा कर रहे हैं, ऐसा कमलाकर, ऊंची तरंगोंवाला समुद्र, सिंहोंसे युक्त आसन (सिंहासन ), सुवसित-सुरवरोंका घर ( देवविमान ); नागलोक, कुबेरको विस्मित करनेवाला रत्नसमूह; लम्बी ज्वालाओंवाली आग। यह देखकर वह अपने स्वामीसे पूछती है कि "आज मैं स्वप्न देखनेवाली हो गयी है, अर्थात् आज मैंने स्वप्न देखे हैं, जिनमें पहला गजनाथ है, ऐसे उन स्वप्नोंका फल हे स्वामी मुझसे कहिए"। यह सुनकर राजाने कहा, "तुम्हें विश्वनाथ पुत्र होगा। सर्वज्ञ, और सर्वेन्द्रोंके द्वारा समचनीय वह देव हैं, उन्हें मत्यं नहीं कहा जाता।" इन्द्रका निरवद्य कथन पूरा होनेपर; सतीके शरीरका प्रक्षालन करनेके लिए, श्री-ह्रो-कान्ति-लक्ष्मी-बुद्धि धृति देवियां आयीं।
. पत्ता-देवके अवतार लेनेके पहले जब छह माह बाकी थे, तब कुबेरने राजाके घरमें स्वर्णवृष्टि की ॥४॥
श्रावण माहमें, जब कि दिशाएं और धरती हरी थो, शुक्लपक्षकी द्वितीयाके दिन वह गर्भमें २.A णिज्जियघणणाह; P विभियधणणाहं। ३. P दिट्ठ । ४. A णिवणाहं । ५. A सिविणोहं । ६. A जे सोलहं। P जो सोलह । ७. A P°गयणाहं। ८. A Pणाहं । ९. P महिणाहो। १०. P जयणाहो। ११. P सव्वण्ह सविद । १२. A देवो णउ भण्णइ सो मच्चो; Pदेवो ण हि सो भण्णइ मच्चो। १३. AP हरिभवणे । १४. A णिरुवज्ज। १५. P सिरि हिरि। १६. P सइं। १७. P छमासिउ । १८. A Pणिवरि ।
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