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महापुराण
[ ४४. ६.११
घत्ता-जे णाहतणुत्तणु गय दिव्वत्तणु ते तेत्तिय परिमाणु भणु ॥
जें तेणे समाण रूवपहाणउ अण्णु ण दीसइ को वि जणु ॥६।।
खेलंतहु दरिसियसिसुलीलहु पंचलक्ख पुज्वहं गय बालहु । णाहु सुणासीरें खीरोहें । पुणु ण्हेवियउ पुवुत्तपवाहे। रायलच्छिदेविइ अवरुंडिउ थिउ णरवइ गर्यसत्तिइ मंडिउ । तित्ति ण पूरइ भोयहं दिव्वहं चउदहलक्ख जांव गय पुत्वहं । तावेकहिं दिणि उडुपल्लट्टउ । पेच्छिवि णाहू समग्गि पयउ। काले कालु वि जेण गिलिज्जइ तेण किं ण माणुसु कवलिज्जइ। जांवि थावि पावज लएप्पिणु तो भणंति सुर रिसि पणवेप्पिणु । एम बुहाहिव तुज्झु जि छज्जइ अण्णु ण एहँउ जगि पडिवज्जइ । घत्ता-जणु तिट्ठइ छित्तउ भमइ पमत्तउ पावइ जम्मि जम्मि मरणु ।
पई मुइवि भडारा तिहुयेणसारा एंव हणइ को जमकरणु ॥७॥
पुणु पाईणबरिहि संपत्तउ . जिणु कल्लणण्हाणि अहि सित्तउ । विहिउ तेणे लहुं सिवियारोहण दुक्ख सहेउयंकु णामें वणु ।
पत्ता-स्वामीके शरीर में जितने परमाणु थे वे उतने ही थे इसीलिए उनके-जैसा रूपप्रधान कोई दूसरा आदमी नहीं था ॥ ६ ॥
७
खेलते और शिशु-क्रीड़ाओंका प्रदर्शन करते हुए शिशुके पांच लाख वर्ष बीत गये । स्वामी. का इन्द्रने फिरसे पूर्वोक्त जलप्रवाह और दूधसे अभिषेक किया, राज्यलक्ष्मी देवीने आलिंगन किया, न्यायको शक्तिसे अलंकृत यह राजा बने। चौदह लाख वर्ष पूर्व समय बीतनेपर भी जब भोगोंसे तृप्ति नहीं हुई, तब एक दिन टूटता तारा देखकर, स्वामी अपने मार्ग प्रवृत्त हुए, जिस कालके द्वारा काल ( नक्षत्र जो समयका प्रतीक है) नष्ट होता है, तो क्या उससे मनुष्य कवलित नहीं होगा। लो मैं जाता हूँ और प्रव्रज्या लेकर स्थित होता हूँ। इतनेमें लोकान्तिक देवोंने आकर प्रणाम किया और कहा-'हे पण्डितोंमें श्रेष्ठ, यह तुम्हें ही शोभा देता है। विश्वमें दूसरा व्यक्ति इसे स्वीकार नहीं कर सकता।'
घत्ता-मनुष्य तृष्णासे व्याकुल और प्रमत्त होकर घूमता है, और जन्म-जन्ममें मृत्युको प्राप्त होता है। हे त्रिभुवनश्रेष्ठ आदरणीय, तुम्हें छोड़कर दूसरा कोन यमकरणका नाश कर सकता है ? ॥ ७॥
इन्द्र फिरसे आया और दीक्षाकल्याण-स्नानमें उनका अभिषेक किया। शीघ्र उन्होंने
७. A जो णाह। ८. A तो तेत्तिय; P तेत्तिओ जि । ९. A जेण समाणउB P तं तेण समाणउं । ७.१. खेल्लंतह । २. P सुणासिरेहिं । ३. A पहावियउ। ४. A णिवसत्तिइ। ५. P ताम भणहि सुर ।
६. A एह । ७. A तेहउ । ८. A P जम्मजरामरणु । ९. P सुरवरसारा । ८.१. T records ap: दाणवरिउवइ इति पाठेऽपि इन्द्रः । २. A तेहिं ।
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