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महापुराण
देवालउ फणिभवणु फणीसणु ।
सरु सररासि चारुसीहासणु माणिको मोहमालाले डे
सिहि हयलि जलंतु चलजालउ ।
घत्ता - एंव णिहालिवि चंदमुहि चंदकति सुहृदंसणपंति || जाइवि भासह भूवइहि सुंदरि सुविहाणइ विहसंति ||६||
महिवर मेहघोसु णिञ्चप्फलु जसु आणइ हरि अच्छइ गच्छइ जो परु अप्परं परहु पयासइ सासयसोक्खसरोरुहछप्पर तेरइ गब्भइ अब्भउ होसइ वुट्टु कुवेरु' देव वणिहिहरु कंतिकित्तिसिरिहिरिदिहिबुद्धिउ आयउ जाउ जर्णैउच्छाहर चित्तसुरासुरपंकयविट्टिहि संवणि सुरिक्ख पच्छिमरतिहि जक्खणिहित्तइ दुक्खणिवारइ
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कहइ महासइहि सिवियफलु । जो सयरायरु लोउ नियच्छइ । जासु दो तिलमेत्तु ण दीसइ । सो अरहंतु संतु परमप्पर । ता रोमंचिय णच्चिय सा सइ । जा छम्मास तांबे चामीयरु । देवि देवहि कितणुसुद्धिउ । सग्गज संचु अच्चयणाहउ | जे मास हि छट्टिहि । थिउ उयरंतरि पत्थिवपत्तिहि । पुनवमास सित्तु वसुहारइ ।
[ ४९.६.९
सुन्दर सिंहासन, देवलोक, नागराजका नागलोक, मयूखमालासे युक्त माणिक्य-समूह, चंचल ज्वालाओं वाली आकाशमें जलती हुई आग ।
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घत्ता - चन्द्रमुखी और चन्द्रमाके समान कान्तिवाली और शुभ दन्तपंक्तिवाली वह यह देखकर, दूसरे दिन सबेरे जाकर हँसती हुई उन्हें राजाको बताती है ॥६॥
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मेघ के समान ध्वनिवाले निश्चल राजा उस महासतीको स्वप्नोंका फल बताते हैं कि जिसकी आज्ञा से इन्द्र बैठता और चलता है; जो सचराचर लोक देख लेते हैं, श्रेष्ठ जो स्वपरका प्रकाशन करते हैं, जिसके तिलके बराबर भी दोष दिखाई नहीं देता, जो शाश्वत मोक्षरूपी सरोवर के भ्रमर हैं वह अरहंत सन्त परमेश्वर तुम्हारे गर्भसे बालक होंगे। तब वह सती रोमांचित होकर नाच उठी । जब छह माह रह गये, तो नवनिधियोंको धारण करनेवाले कुबेरने स्वर्णवृष्टि की। देवीको शरीर शुद्धि करनेवाली कान्ति, कीर्ति, श्री, ह्री, धृति और बुद्धि आदि देवियाँ आयीं। लोगों में उत्साह फैल गया । अच्युत स्वर्गके स्वामी वह स्वर्गसे च्युत हुए। ज्येष्ठमाह के कृष्णपक्ष में जिसने सुरासुरोंमें कमलवृष्टि की है ऐसी छठीके दिन, श्रवण नक्षत्रमें रात्रिके अन्तिम प्रहरमें राजाकी पत्नीके उदरमें वे स्थित हो गये । यक्षके द्वारा की गयी दुःखका निवारण करने वाली धनकी धाराने फिर नौ माह तक सिंचन किया।
११. A सिंहास । १२. A मोहु मालालउ ।
७. १. A कुबेरदेउ । २. A जाम । ३ AP कयं । ४ AP जणि उच्छाउ । ५. A कण्हयछट्टिहि । ६. A सवणसुरिषखइ । ७. AP णवमासु ।
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