________________
-४९. ९.३ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
घत्ता—छावट्ठिलक्खछव्वीसहिं वि वरिससहासहि रिद्धउ ॥ सायरस छडिवि कोडि गय थक्कर पुणु पल्लेद्धउ ॥७॥
८
इहुं वट्टइणिogs सीयलि इहुं तिहिं णाहिं संजुत्तउ गुणियारहमे वासरि विहे जोइ उप्पण्णउ जोइउ आपणु भत्ति तरुणीलहु सिहर कुहर थियखगरामालहु णिहियर पावर्डेलणिण्णासणि उत्त मंत विहि सयल करेष्पिणु
सुरपेल्लिउ णं डोल्लई मंदरु अलिझंकार सरलई सदलई कमलि कमल आसीणई हंसई
उ अरुहधम्मु धरणीयलि । पुव्वजम्मि भावियरयणत्तउ । चिमेव खिज्जंतइ ससहरि । मायइ तारहिं णयणहिं जोइउ । मेलविरइतारामालहु | अमरवरेसें णिउ सुरसेलहु । "पंडुसिलायलि पंचासाणि । खीरं भोणिहिखीरु एप्पिणु ।
घत्ता - सायकुंभमयकुंभकर एंति गयणि णचंति णवंति ॥ खीरवारिधारासयहिं देवदेउ भावेण ण्हवंति ||८||
९
कलसहं सहसई लेइ पुरुंदरु | कलसि कलसि संणिहियई कमलई । हंसई कयकलसरणिग्घोसई ।
१७९
घत्ता - जब सौ सागर और छियासठ लाख छब्बीस हजार वर्ष कम एक सागर प्रमाण समय बीत गया, और जब आधापल्य समय रह गया ॥ ७॥
Jain Education International
१०
८
कि जब शीतलनाथ निर्वाणको प्राप्त हुए थे और अर्हतधर्म धरतीतल पर नष्ट हो गया था । तब तीन ज्ञान से युक्त पूर्व जन्ममें रत्नत्रयको भावना करनेवाले योगी श्रेयांस फागुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन कि जब चन्द्रमा प्रतिदिन क्षोण होता जा रहा था, विष्णु योगमें उत्पन्न हुए। उन्हें माँ ने अपनी उज्ज्वल आँखोंसे देखा । भक्तिसे आकर इन्द्र उन्हें वृक्षोंसे नीले, जिसकी मेखला तारावलियोंसे शोभित है, जिसके शिखर-कुहरों में विद्याधर स्त्रियाँ स्थित हैं, ऐसे सुमेरुपर्वतकी पापपटलको नष्ट करनेवाली पाण्डुकशिलाके सिंहासनपर उन्हें रख दिया । उक्त समस्त मन्त्रविधि पूरी कर, और क्षीरसमुद्रका जल लेकर ।
घत्ता - स्वर्णमय घड़े हाथ में लिये हुए देव आते हैं, आकाशमें नाचते और प्रणाम करते हैं, क्षीर जलकी सैकड़ों धाराओंसे भावपूर्वक देवदेवका अभिषेक करते हैं ॥ ८॥
९
देवोंसे प्रेरित मन्दराचल मानो डगमगा उठता है; इन्द्र हजारों कलशोंको लेता है, प्रत्येक कलशपर भ्रमरोंसे झंकृत सरल और सदल कमल रखे हुए हैं, कमल-कमलपर हंस बैठे हुए हैं, हंस
८. A सिट्टउ; P सिद्धउ । ९. A पुण्णटूउ |
८. १. A फग्गुणश्यारहमइ । २. AP विण्डुजोध; T विण्डुजोए ज्येष्ठानक्षत्रे । ३ AP वलय । ४. A पापडलु । ५. A पंडसिलायलि । ६. A मंगलु सासणि ।
९. १. P डोल |
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org