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लंगलमुसलसंखकर दुद्धर तहिं थरहरइ मरइ रिउ ण सरइ aur far asरिजूरावणु ताह लील दी सइ विवरेरी भग्गा सई सुहडत्तणवाएं संगरु करिवि हैरमि करिरयणईं लुह बंभु हयपुत्तविओएं मई विरुद्धि जगि को विंण जीवइ
महापुराण
घत्ता - महुं कमकमलाई ण संभरइ जो रायत्तणु मग्गइ ॥ सोसण परियणपरियरिउ जमपुरपंथें लग्गइ ||९||
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दुवई - ई-इय गज्जंतु राउ णिजेमंतिहि बोल्लिउ हो ण जुज्जए ॥ किं कलहेण तांव पडिवक्खहं महिवइ दूर दिज्जए । सो गंधपी सुरतिसी । सिद्धाई जाई रयणाई ताई |
सो दिव् संखु जइ तुज्झ देंति तो ते जियंति
ते भिड़ंत जहिं केसरिकंधर | करु असिवरहु कया विण पसरइ । गंधहत्थि णावइ अइरावणु । उगणंति ते आण तुहारी । तं आणिवि जंपिउ राएं । गलियंसुयई सुहद्दहि णयणईं । डुज्झउ सोसिउ दूसहसोएं | जैंडं वि मरणु समरंगणि पावइ ।
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तं असं | कति ।
णं तो मरंति ।
[ ५४.९.५
यमकी भौंहों के भंगुरभाववाले दिव्य धनुष सिद्ध हैं। दोनोंके पास रत्नोंसे स्फुरित गदा है और आज्ञा माननेवाली देवियाँ हैं। दोनोंके हाथमें हल- मूसल और शंख हैं, दोनों कठोर हैं। सिंहके समान कन्धेवाले वे दोनों जहाँ लड़ते हैं वहाँ शत्रु थर्रा जाता है, मर जाता है, सामना नहीं कर पाता । असिवरपर उनका हाथ कभी नहीं जाता। एक और उनके पास शत्रुओंको सतानेवाला गन्धहस्ती है, जो मानो ऐरावत है । उनकी लीला तुम्हारे विरुद्ध दिखाई देती है, वे तुम्हारी आज्ञाकी परवाह नहीं करते । अपने सुभटत्वकी हवासे वे स्वयं भग्न हैं ।" यह सुनकर राजाने कहा, "मैं युद्ध करके गजरत्नोंका हरण करूंगा ।" सुभद्राके गलिताश्रु नेत्रोंको ब्रह्मा पोंछे, मृतपुत्रके वियोगसे वह जले, और असह्य शोकसे शोषित हो । मेरे विरुद्ध होनेपर संसारमें कोई जीवित नहीं रहता, यम भी युद्ध में मुझसे मृत्युको प्राप्त होता है ।
घत्ता -- जो मेरे चरणकमलोंकी याद नहीं करता और राजत्व चाहता है वह स्वजनों सहित परिजनों से घिरा हुआ यमपुरके रास्ते लगता है ||९||
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इस प्रकार गरजते हुए राजासे मन्त्रियोंने कहा - "यह युक्त नहीं है; कलहसे क्या ? शत्रुओंके पास दूतको भेज दीजिए। ऐरावत के शीलवाला वह गन्धहस्ति, और जितने रत्नसिद्ध हुए हैं वे, वह दिव्य शंख, वह असंख्य धन, यदि वे तुम्हें देते हैं और आज्ञा मानते हैं, तभी वे जीवित रहते
३. A हरेवि; P हरेमि । ४. Pजमु । ५. A सो सयणसपरियण; P सो सयणपरियणं । १०. १. APणियमंतिहि । २. AP गंधिपीलु । ३. AP°लीलु ।
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