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महापुराण
[५४. ११.४पहरणरुक्खराइसंछण्णउं
णिवकामिणिवडजक्खिरवण्णउं । लंबललंतचिंधकोमलदलु
चलचामरहंसावलिअविरलु । करिगिरिवर लोहियजलणिज्झरु उग्गयचित्तछेत्तइंदीवरु। सुहडंतावलिविसहरचुंभलु गयणविलग्गकोतवंसत्थलु । दूय राउ जइ मग्गइ कुंजरु तो पइसउ सो समरवणंतरु। रुट्ठदुविट्ठसीहसरणक्खहं
तहिं णउ चुकइ लुक्कविवक्खहं । इहु वारणु तहु जीवियवारणु भयगारउ वच्छयलवियारणु । घत्ता-तं णिसुणिवि दूएं जंपियंउं महुँ एहउ मणि भावइ ।।
हरि तारयसरहहु कमि पडिउ अचल चलंतु ण जीवइ ॥११॥
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दुवई-जासु तसंति एंति पणवंति थुणंति वि देवदाणवा ।।
____ तासु ण गहणु किं पि तुम्हारिस विबल वरायमाणवा ॥ तो कण्हें जंपिउं पेसुण्ण
जाहि दूय मा जंपहि सुण्णउं । तं णिसुणिवि दूयउ णिग्गेउ गउ कहइ ससामिहिं णउ अप्पइ गउ । दुह दुविट्ठ धिट्ठ रणु कंखइ तंबच्छिहिं करवालु णिरिक्खइ। सेव ण करइ णे सो पई मण्णइणियसंमुहं सिरिछिछैइ सणइ ।
भणइ ण भयवसेण वसि होसमि चाउ दंति करि वरु ढोएसमि । बलभद्र उस अवसरपर कहते हैं, "हे दूत, जो प्रहरणरूपो वृक्षराजियोंसे आच्छन्न है, नृपकामिनियोंरूपी वट-यक्षिणियोंसे सुन्दर है, जिसपर लम्बे और हिलते हुए ध्वजरूपी कोमल पत्ते हैं, जिसपर अविरल चलचामरोंकी हंसावली रहती है, जिसमें रक्तरूपी जलका निर्झर है, उठे हुए विचित्र छत्ररूपी कमल हैं; जो सुभटोंकी आंतोंरूपी हंसावलीसे बीभत्स है, जिसका सुन्दर वंशस्थल आकाशको छूता है, ऐसे हाथीको यदि हे दूत, वह राजा मांगता है तो उसे तुम समररूपी वनान्तरमें भेज दो। क्रुद्ध द्विपृष्ठरूपी सिंहके तीररूपी शत्रुओंको लुप्त करनेवाले बाणोंसे वह नहीं चूकेगा। यह वारण (गज ) उसके जीवनका वारण करनेवाला है, भयकारक और वक्षस्थलका निवारण करनेवाला है।"
घत्ता-यह सुनकर दूतने कहा, "मेरे मनमें यह आता है कि नारायण, तारकरूपी श्वापदके चरणों में पड़ा हुआ, हे अचल, चलता हुआ जीवित नहीं रहेगा" ॥१९॥
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देव और दानव जिससे त्रस्त होते हैं, आते हैं, प्रणाम करते हैं और स्तुति करते हैं, उसको कोई भी नहीं पकड़ सकता। तुम जैसे बलहीन बेचारे मानवोंकी क्या ?" यह सुनकर नारायणने कठोर बात कही कि "हे दूत, व्यर्थ बकवास मत करो, तुम जाओ।" यह सुनकर दूत निकलकर चला गया। उसने अपने स्वामीसे कहा कि वह अपना हाथी नहीं देता। दुष्ट और ढीठ द्विपृष्ठ युद्धको आकांक्षा रखता है, अपनी लाल-लाल आंखोंसे तलवारको देखता है, न वह तुम्हारी सेवा करता है और न तुम्हें मानता है; अपने सामने श्रीरूपी पुंश्चलीका सम्मान करता है, मदके वशमें
२. चित्तछत्तु । ३. AP लुक्कु । ४. P जंपिउं । १२.१. A तो । २. AP दूर गउ णिग्गउ । ३. A ,छह ।
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