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-५६. २. १०]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित जणु इच्छइ सयलु सकज्जकरणु जीवहु पुणु जिणवरधम्मु सरणु । घत्ता-ईय बोल्लिवि रंजु पमेल्लिवि सोसियभीमभवण्णउ ।
जियकामहु सुव्वयणामहु पासि तेण लइयउं वउ ॥११॥
दुवई-जायउ सो मरेवि संणासे वम्महजलणपावसो॥
___ पंचाणुत्तरम्मि तेत्तीसमहोवहिदीहराउसो॥ भासइ गोत्तमु णियगोत्तसूरु पंचिदियेरिउसंगामसूरु । सुणि सेणिय कहमि मणोहिरामु पइ पइ वसंति पुरणगरगामु । गोजूहचिण्णसुहेरियतणालु इह भरैहि देसु णामें कुणालु । तहिं सावत्थी पुरि वसणहेउ णिवसइ णरिंदु णामें सुकेउ । अवरु वि बलि तेत्थु जि अक्खकील पारद्ध बिहिं मि जूयारलील । चरँगमणछेजकडूढणपवंचु वरघायदायघरहरणसंचु । जाणिवि रवंति किर बे वि जाम एक्क उड्डिउँ णियरज्जु ताम।
हारंतउ सपुरु सकोसु देसु थिउ एकल्लउ काणीणवेसु । की जाती है इसी प्रकार सब लोग अपने कामकी इच्छा करते हैं। केवल जिनवरधर्म हो जीवकी शरण है।
पत्ता-यह कहकर और राज्य छोड़कर उसने कामको जीतनेवाले सुव्रत नामक मुनिके पास भीषण संसाररूपी समुद्रको जीतनेवाला व्रत ग्रहण कर लिया ॥१॥
कामरूपी ज्वालाके लिए पावसके समान वह संन्यासपूर्वक मरकर पांचवें अनुत्तर विमानमें तैंतीस सागर प्रमाण लम्बी आयुवाला देव हुआ। गौतम मुनि कहते हैं-अपने गोत्रके लिए सूर्य, पांच इन्द्रियोंरूपी शत्रुके लिए शूर हे श्रेणिक, मैं सुन्दर कथा कहता हूँ, सुनो। इस भरत देशमें कुणाल नामका देश है, जहां पग-पगपर पुर, नगर और ग्राम हैं। जहां गायोंका झुण्ड सुरभित तृणोंका आस्वाद लेता है। वहाँ श्रावस्तो पुरी है। उसमें जुआ आदि खेलनेवाला सुकेतु नामका राजा रहता था। एक और जुआ खेलनेवाला बलि नामका मनुष्य था। दोनोंने पासे खेलना शुरू किया। चर (दूसरेको गोट मारना), गमन ( अपनी गोटकी रक्षा करते हुए, दूसरेके घरसे अपने घरमें ले आना ), छेज्ज (छेद्य) दूसरेकी गोट मारना, कड्ढन प्रवंच (दूसरोंसे बचाकर अपनी गोट ले आना), उत्तम घात और दाय? देना, घरहरण (दो-तीन गोटोंसे दूसरेके घरको स्वीकार कर लेना, संच ( दूसरेकी गोटके प्रवेशको रोकना) आदिको जानकर वे लोग तबतक खेले कि जबतक एकने अपना राज्य खो दिया। सुकेतु अपना पुर, कोश और देश हारकर अकेला दोनरूपमें रह गया।
६. Pइउ । ७. AP मेइणि मेल्लिवि । ८. A सोसीय । २. १. AP°पाउसो। २. AP जो इंदिय । ३. A सेणि कहमि । ४. A णयर। ५. A°सुरहिय ।
६. A भरहदेसि । ७. P वरगमण । ८. A वरदायघाय; P परदायधाय । ९. P रमंति । १०. A के उडिउं ।
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