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महापुराण
घत्ता-णउ हय गय णउ संदण धय एक्कु जि वसणें णडियउ || गुरुहुं महंत रायविलासह पडियउ ||२|| ३
वारं
दुबई - जेण करंति देवगुरुभोसिउं दुहमगव्वपरवसा || ते विडंति एंव णिवरा मुवि दुज्जसमसिमलीमसा ॥ मायाविणीs विब्भमहरीइ सेज्जातं बोल सुहं करीइ । आजाविलं बियेसाडियाइ णीसेस सोक्खणिद्धाडियाइ जूएण ण कासु वि कुसलु एत्थु वंदेवि सुदंसणु मुक्वत्थु तर लेप्पिणु थिउ लंबत हत्थु इत्थफलु वि तव तिव्वकम्म पाडेसमि मत्थइ तासु वज्जु इय संभरंतु संणासणेण लंतवि सुरु सुक्किय सोह माणु
घत्ता - णीसंगें जिणवरलिंगें बलि देवत्तु लप्पिणु ॥ असराले जंतें कालें सुरणिलयाउ चवेष्पिणु ॥३॥
घत्ता-न उसके पास अश्व-गज थे और न स्यन्दन-ध्वज । वह अकेला था । महान् गुरुओंके मना करनेपर भी उसका राज्यविलाससे पतन हो गया ||२||
३. १. AP
वर खज्ज माण चेडियाइ । खणि खणि आयइण वराडियाइ । ग सो सुकेउ होइवि अवत्थु । णाणेणालोइयस यलवत्थु । चितवइ अट्टझाणेण गत्थु । तो मारेसमि आगमियजम्मि । बलि जेण महारउ जित्तु रज्जु । मुड जाय भूसिउ भूसणेण । चदहसमुद्दजीवियपमाणु ।
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दुर्दमनीय अहंकार के वशीभूत होकर जो देव और गुरुका कथन नहीं करते, संसार में अपयशरूपी स्याहीसे मैले उन राजाओं का पतन हो जाता है । मायासे विनीत, विभ्रमको धारण करनेवाली शय्या और ताम्बूल लिये अत्यन्त शुभंकरी, घुटनों तक लटकती हुई साड़ीवाली दासीके द्वारा मनुष्य खा लिया जाये, यह अच्छा है, परन्तु क्षण-क्षणमें इस बराटिका ( कौड़ी ) के द्वारा नहीं । इस संसार में जुए में किसीकी कुशलता नहीं है । वह सुकेतु निर्वस्त्र होकर चला गया । दिगम्बर तथा जिन्होंने ज्ञानसे समस्त वस्तुओंको देख लिया है, ऐसे सुदर्शन मुनिकी वन्दना कर तप ग्रहण कर, हाथ लम्बे कर आर्तध्यानसे ग्रस्त वह विचार करता है कि यदि तपके तीव्रकर्मका कुछ भी फल है तो मैं आगामी जन्ममें उस बलिको मारूँगा, उसके मस्तकपर वज्र गिराऊँगा, कि जिसने मेरा राज्य जीत लिया है । इस प्रकार स्मरण करता हुआ वह संन्याससे मर गया और भूषणोंसे अलंकृत तथा पुण्योंसे शोभमान वह लान्तव देव हुआ चौदह समुद्र पर्यंन्त जीवनके प्रमाणवाला ।
घत्ता - अनासंग जिनवर दीक्षासे देवत्व पाकर बलि भी प्रचुर समय बीतने पर देवविमानसे च्युत होकर - ||३||
[ ५६.२.११
गुरुपि । २. P विडंबियं । ३. P वरि ।
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६. AP पवाणु । ७. P णीसर्गे ।
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४. AP मुक्कु वत्थु । ५. AP चोट्स ।
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