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महापुराण
[५१. १६.१२
धत्ता-हयकंठे उत्तु विउस ण कि पि विवाएं । ___ किं सूरहु को वि वहिमु दीसइ तेएं ॥१६॥
१७ मझु वि पोसिउं को जगि सूरउ को महिवइ वरवीरवियारउ । रयणमाल बद्धी मंडलगलि हउं अवगण्णिउ जाइवि महियलि । जेण कण्ण दिण्णी भूगमणहं सो पइसरउ सरणु सिहिपवणहं । सो पइसरउ सरणु देविंदहु सो पइसरउ सरणु धरणिंदहु । सो हउं कैड्ढिवि अज्जु जि फाडमि वइवसपुरवरपंथें धाडमि । सवणायण्णियपावरसहें। सिल चालिज्जइ किं ण बलहें । सीहु सीहु सोंडें सोसिज्जा एयहिं साहसेहि लजिज्जइ । तरुणीमग्गणचाडुयवंतें
किं वेहाविउ सो वरइत्तें। मणिकुंडलमंडियगंडयलई दोहं वि तोडमि रणि सिरकमलई । एंव चवेवि धीरु हुंकारिवि णिग्गंउ मंतिमंतु अवहेरिवि । संदाणियविमाणपरिवाडिहिं परिवारिउ विज्जाहरकोडिहिं।
ओरंजंतिहिं आहवभेरिहिं जुयखैइ णाइ रसंतिहिं मारिहिं । णं सायरु मज्जायविमुक्कर महिहरमेहल रुभिवि थक्कउ ।
पत्ता-अश्वग्रोव बोला, हे विद्वान्, विवादमें कुछ भी नहीं है, क्या तेजमें कोई भी सूर्यसे बड़ा दिखाई देता है ॥१६॥ .
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मेरी तुलनामें संसारमें कोन बड़ा है ? कौन राजा वरवीरोंका विदारण करनेवाला है ? कुत्तेके गले में रत्नोंकी माला बांध दी गई, और मेरी उपेक्षा की गयी। धरतीतलपर जाकर जिसने भूमिपर चलनेवालोंके लिए कन्या दी है, वह आज पवन और आगमें प्रवेश करे, वह देवेन्द्रकी शरणमें जाये, वह धरणेन्द्रको शरणमें प्रवेश करे, उसे मैं खींचकर आज ही फाड़ डालूंगा और यमपुरके मार्गपर भेज दूंगा। जिसने अपने कानोंमें प्रावृट-शब्द सुना है ऐसे बेलके द्वारा शिलाका संचालन क्यों न किया जाये ? सीह और सोधु (सिंह और मद्य ) का शोषण शौंड ( मद्यप और गज ) के द्वारा किया जाता है, इन साहसोंके द्वारा लज्जा आती है, युवती मांगनेके लिए चापलूसी करनेवाले वरदत्तने इस प्रकारको गर्जना क्यों की? जिसके गण्डतल मणिकुण्डलोंसे मण्डित हैं, ऐसे दोनों सिर-कमलोंको तोडू गा। यह कहकर और हुंकारकर वह धीर मन्त्रीके मन्त्रकी अवहेलना करके गया। प्रदर्शन किया गया है विमानोंकी परम्पराका जिसमें ऐसी विद्याधरोंकी श्रेणियोंके द्वारा वह घेर लिया गया। बजते हुए युद्धके नगाड़ोंके साथ, युगक्षयमें जैसे बजती हुई मारियोंके साथ मानो समद्र मर्यादाहीन हो उठा हो। और मानो महीधरकी मेखलाको रुद्ध कर बैठ गया हो। १७. १. AP पासि । २. P को वि जगि। ३. A कडमि । ४. AP°विवाण । ५. A जुगखह ।
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