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--५२. २२. ६ ] महाकवि पुष्पबन्त विरचित
२३३ केण वि सुयरिवि पहुदिण्णु गाउं छडि णियजीवियभूयगाउं । केण वि सुयरिवि पहुचामराई सलहियई पक्खिपक्खंतराई । पहुसुकियभरहु वंकेवि वयणु केण वि पडिवण्णउं बाणसयणु । केण वि सुयरिवि पहुछत्तछाहि आसंघिय घणसरपुंखछाहि । केण वि"सुमरिवि पत्थिवपसाउ चक्खिउ अरिवीरपहारसाउ । केण वि सुयरिवि पहुपालियाई मयगलकुंभयलई"फालियाई । दुव्वारवइरिमग्गणविहत्तु
भल्लार धीर रायरत्तु । कासु वि रणमंदिरसामिणीइ । हियवउ लइयउं सिवकामिणीइ ।
घत्ता-कासु वि सिरकमलु ओटुउँडैदलु गिद्ध सचंचुइ चालइ॥ __ परितोसियजणहु महिवइरिणहु णं मोल्लवणु णिहालइ ॥२१॥
. २२ . दुवई-ता सहस त्ति पत्तु हरिकंधरु पभणइ तसियवासवो ॥
भो भो कहसु कहसु कहिं अच्छइ सो महु वहरि केसवो।। ता उत्तु कण्हेण भो मेइणीराय सोहं रिऊ केसवो एहि णिण्णाय । जाणिजए अज्ज दोण्हं पि रूसेवि को हणइ सिरु लुणइ रणरंगि पइसेवि। कुद्धेण सिरिकुमुइणीपुण्णयंदेण अलयाउरीसेण खेयरणरिंदेण । संगामरामारइच्छाणि उत्तेण
तं सुणिवि पडिलविउं सिहिगीवपुत्तेण । मांसबिन्दुकी इच्छा को। किसोने सुन्दर प्रभु वस्त्रकी चिन्ता कर लटकते हुए अपने ही देहचर्मको बहत माना। किसीने स्वामीके द्वारा दिये गये गांवकी याद कर अपने जीवन और इन्द्रियोंका गांव छोड़ दिया। किसीने स्वामीके चमरोंकी याद कर पक्षियों के पक्षान्तरोंकी सराहना की। प्रभुके पुण्यसे भरे हुए मुखको टेढ़ा कर किसीने बाणोंका शयन स्वीकार कर लिया। किसीने स्वामीकी छत्रच्छायाकी याद कर सघन तोरोंकी पुंख-छायाका आश्रय ले लिया। किसीने राजाके प्रसादकी याद कर शत्रुके वीर प्रहारके स्वादको चख लिया। किसीने प्रभुके द्वारा पालित और स्फारित मैगल गजोंके कुम्भस्थलोंकी याद कर दुनिवार शत्रुके तीरोंसे विभक्त राजामें अनुरक्त धैर्यको अच्छा समझा। किसीके हृदयको रणरूपी मन्दिरको स्वामिनी शिवा(शृगालिनी)रूपी कामिनीने ले लिय
पत्ता-किसीके सिररूपो कमल और ओष्ठपुटरूपी दलको गीध अपनी चोंचसे चालित करता है, मानो जनोंको परितोषित करनेवाले राजाके ऋणके मूल्यको देख रहा है ॥२१॥
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तब सहसा अश्वग्रीव वहां पहुंचता है, और इन्द्रको सतानेवाला वह कहता है कि और बताओ-बताओ, वह-वह मेरा दुश्मन नारायण कहां है ? तब नारायणने कहा, 'हे पृथ्वीराज, वह में तुम्हारा शत्रु केशव हूँ। हे न्यायहीन, आज यह जाना जायेगा कि हम दोनों के रूठनेपर कोन युद्धरंगमें प्रवेश कर मारता है और सिर काटता है ?' तब लक्ष्मीरूपी कुमुदिनीके पूर्ण चन्द्र अलकापुरीके स्वामी विद्याधरराजा, संग्रामरूपी स्त्रीसे रमणको इच्छा रखनेवाले मयूरग्रोवके
७. A गार; P गामु । ८. A उडिउ । ९. A गाउ; P°गामु । १०. A सुअरिउ; P सुअरिवि ।
११. A पालियाई। १२. A°सामिणीहिं । १३. A कामिणोहिं। १४. A उट्ठउलदलु । २२. १. AP पुण्ण इंदेण ।
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