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-५२. २५. २२] महाकवि पुष्पदन्त विरचित
२३७ हरिणा दित्तं चित्तं चकं सहसाराधाराजलियं हयगलगलकंदलयं दलियं वहलं कीलालं गलियं । कुंडलकिरणं फुरियकवोलं के कुंभिणिवलयइ पडियं णं सरसं तामरसं सदलं कालमरालाहिवखुडियं । कामिणिकारणि कलहसमत्तो परणरकरसरहयगत्तो आसग्गीवो वियलियजीवो सत्तमणरयं तं पत्तो। णहयरविसहरमहिमणुएहिं सामि भणेप्पिणु संगहिओ जयजयरवरिउ मुवणेहिं हरि हलहरसहिओ महिओ। हिंडिवि दाहिणभरहतिखंडे णरवइ सवसं कोण णिओ मागहदेवो वरतणुणामो अवि य पहासो तेण जिओ। दिणयरकित्ति हुयवहजडिणा हलिणा तस्स पयावइणा वद्धो पट्टो विउले भाले मंगलविलसियजणरइणा । परपयावाकंपियमुवणो असिवरदूसियरमई णियकुल कुवलयकुवलयबंधू जाओ कण्हो चकवई । उहसेढीणं रोयं काउं जलणजडिं ससुरं खयरं
आओ गुरुयणपंणवियसीसो पुणरवि तं पोयणणयरं। घत्ता-लइ दीसह पवरु एउ वि अवरु णिच्छयणियमणिउत्तरं ॥
इह सुपुरिसचरित्रं बहुगुणभरि जगि आढत्त समत्तउं ।।२५।। अपने कानोंके लिए त्रिशूलके समान दुर्वचनोंको सहन नहीं करते हुए, तथा अपना मुख दंशिताधरों एवं भौंहोंसे भंगुर और लाल आंखोंवाला कर नारायण दीप्त हजारों आराओंकी धाराओंसे प्रज्वलित चक्र छोड़ दिया। अश्वग्रीवका गला और कपाल कट गया। प्रचर रक्त बह गया। कुण्डलकी किरणोंवाला स्फुरित कपोलवाला उसका मस्तक भूमण्डलपर इस प्रकार गिर पड़ा मानो कालरूपी हंसराजके द्वारा तोड़ा गया सदल सरस रक्तकमल हो । स्त्रीके लिए कलहसे मतवाला, शत्रु मनुष्यके हाथके चक्रसे आहत, नष्टजीव अश्वग्रीव सातवें नरक गया। विद्याधरों, नागों और मनुष्योंने स्वामी कहकर उस (त्रिपृष्ठ ) को स्वीकार कर किया। विश्वोंने जयजय शब्दसे पूरित तथा बलभद्र सहित हरिकी पूजा को । दक्षिण भरतखण्ड में भ्रमण कर उसने किस राजाको अपने वशमें नहीं किया ? वरतनु नामका मागधदेव और प्रभासको भी उसने जीत लिया। दिनकरके समान कीर्तिवाले ज्वलनजटी, बलभद्र और प्रजापति तथा जिसमें मंगलके कारण लोगोंकी विलसित है ऐसे अर्ककीतिने उसके विशाल भालपर पट्ट बांध दिया। जिसके प्रचुर प्रतापसे भुवन प्रकम्पित है, जिसके असिवरसे क्रूरमति दूषित कर दिया है, जो अपने कुलरूपी कुमुद और पृथ्वीमण्डलका बन्धु है, ऐसा वह त्रिपृष्ठ चक्रवर्ती हो गया। अपने ससुर विद्याधर ज्वलनजटीको विजयाकी दोनों श्रेणियोंका राजा बनाकर गुरुजनोंके प्रति अपना सिर झुकानेवाला वह फिर उस पोदननगर पहुंचा।
पत्ता-लो यह दूसरी बात भी महान दिखाई देती है कि निश्चयरूपसे अपने मनमें कहा गया बहुगुणोंसे भरित जगमें आदृत सुपुरुष-चरित समाप्त हो गया ॥२५॥
२. A पित्तं दित्तं चित्तं। ३. P कलहु। ४. A गरए तं पत्तो। ५. AP पूरिय। ६. A पवरं । ७. A कुरगई; P कूरमई। ८. AP णियकुलणहयल । ९. A राउ काउं । १०. A पणमियं ।
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