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- ५२. २.१० ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
तइ जलइ जलणु जइ णत्थि वारि भो आणइ मरणु पहाणवरु पहु लहु दीसइ जुंजेवि सामु
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जइ णत्थि संति तो पडइ मारि । 'भो एत्थु ण णिज्जइ कालु सुइरु | ता विहसिवि भासइ पढममु ।
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घत्ता - सज्जणु उवसमइ खलु किं खमइ बोल्लंतहुं सुइमिट्ठरं । घिउ हुर्येवह मिलिडं जललवजलिडं बप्प किं ण पई दिट्ठरं ||१||
२
दुबई - मित्ततिविट्ठि रुट्ठि गिरिधीर वि एंति ण वइरिणो रणं ॥ किं विसति दंति हरिणाहिवखरकर रुह वियारणं ॥ इहुं अहिवलयविलंब माण
मई जाणिलं तइयहुँ कहिं वि कालि तोडेसइ हयकंधरहु सीसु को हालाहलु जीहाइ कलइ को गणि जंतु अहिमयरु खलइ को कालु कयंत माणु मलइ को फणिवर्णमणिणियरु हरइ को भंडइस महुं भायरेण
वणि उच्चाइय सिल इलसमाण । देवहुं पेक्खंत भडवमालि । रत्तच्छिवत्तुं भूभंगभीसु । को करयलेण हरिकुलिसु दलइ । को णियबलेण धरणियलु तुलइ । को जलणि णिहित्तु वि णाहिं जलइ । को पडिय विज्जु सीसेण धरइ । त जंप मंत सायरेण ।
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जलती है जहां पानी नहीं होता, जहाँ शान्ति नहीं होती तो वहाँ आपत्ति आती है, प्रधानका वैर, मृत्युको लाता है, अरे यहाँ बहुत समय नहीं बिताना चाहिए। हे प्रभु, मिलने से शीघ्र साम दिखाई देगा ।" (यह सुनकर ) तब प्रथम राम ( बलभद्र विजय ) ने हँसकर कहा
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घत्ता —- सज्जन शान्त होता है, कानोंको मीठा लगनेवाला बोलनेपर भी क्या दुष्ट क्षमा करता है ? हे सुभट, आगसे मिला हुआ ( जलता हुआ ) और जलकणोंसे मिला हुआ घी क्या तुमने नहीं देखा ? ॥१॥
२
हे मित्र, त्रिपुष्ठके क्रुद्ध होनेपर भी पहाड़की तरह धीर वैरी रण में नहीं आते । सिंहके द्वारा तीखे नखोंसे विदारणका क्या गज उपहास करते हैं ? जब सर्पमण्डलसे अवलम्बित पृथ्वी जैसी शिलाको उसने उठाया था, तभी मैंने जान लिया था कि देवोंके देखते हुए, योद्धाओंके कोलाहल के बीच किसी भी समय वह अश्वग्रोवके लाल-लाल आंखोंवाले तथा भ्रभंगसे भयंकर सिरको तोड़ेगा ? विषको जीभसे कोन छूता है ? करतलसे इन्द्रके वज्रको कौन चूर-चूर कर सकता है; आकाशमें जाते हुए सूर्यको कौन स्खलित कर सकता है ? कोन अपनी शक्तिसे पृथ्वीको तौल सकता है ? कौन काल और यमके मानको मैला कर सकता है ? कौन आगमें रखे जानेपर भी, नहीं जलता ? नागराजके फनके मणिसमूहका अपहरण कौन कर सकता है ? गिरती हुई बिजलीको कौन धारण कर सकता है ? मेरे भाईके साथ कौन युद्ध कर सकता है ? तब सागर मन्त्री बोला - "हे बलभद्र और चन्द्रमाके समान कान्तिवाले, आपने जैसा जो जाना है, उसमें जरा भी
११. AP घुउ | १२. A पढमु रामु । १३. A बोल्लंतहो । १४. A हृववहमिलिउ; P हुयवहि मिलिउ | २. १. A ॰बिलंबमाणे । २. A समाणे । ३ AP हि । ४. AP रतच्छिवंतु। ५. A कुडिस । ६. A फणिवइफणिमणु । ७. AP तो । ८. A मंतें सायरेण ।
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