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महापुराण
[ ५२. ८. ११घत्ता-अग्गइ घणर्थणिहिं सीमंतिणिहि रणु बोल्लंतहुं चंगउं ॥
अच्छउ असि अवरु पहुकरपहरु तुह ण सहई ललियंगउं ॥८॥
दुवई-भासइ विस्ससेणु भो जाहि म जंपहि चप्फलं जणे ।।
__तुह पइणो महं पि दीसेसइ बाहुबलं रणंगणे ॥ तं णिसुणिवि दूयउ गउ तुरंतु कोवग्गिजालमालाफुरंतु । हयगीवहु कहइ अहीणमाणु परमेसर रिउ पोरिसणिहाणु । अहिणवविसट्टकंदोडणेत्तु
ण समप्पइ तं परिणिउं कलत्तु । संधाणु ण इच्छइ गरुडकेउ दीसइ भीसणु णं धूमकेउ । जिह सक्कइ तिह विज्जाबलेहिं भिडु मुसलहिं सूलहिं सव्वलेहिं । ता पभणइ पहु पीडियकिवाणु एवहिं हउं सोहमि जुज्झमाणु । किंकर णिहणंतहं णत्थि छाय मा को वि भणेसइ हय वराय । अविहेयविहंडणि कवणु दोसु उग्घोसहु लहुँ रणरहसघोसु । दुहमदर्गुदप्पविमणेण
एत्तहि वि मृगांवइणंदणेण । अवलोयहुं अवलोयणिय विज पेसिय खंगपुंगव वंदणिज । भडथडगयघडरहेसंपउण्णु
आइय जोइवि पडिवक्खसेण्णु ।
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पत्ता-सघन स्तनोंवाली स्त्रियोंके सम्मुख युद्ध बोलते हुए अच्छा लगता है, तलवार रहे, स्वामीके कर का प्रहार तुम्हारा सुन्दर शरीर नहीं सहन कर सकता" ||८||
तब त्रिपृष्ठने कहा, "अरे तू जा, लोगोंको चपलता की बात मत कर । तुम्हारे राजा और मेरा बाहबल युद्धके आँगनमें दिखाई देगा।" यह सुनकर दूत क्रोधकी ज्वालमालासे तमतमाता हुआ तुरन्त गया। वह अश्वग्रीवसे कहता है कि शत्रु अधिक मानी और पौरुषका निधान है। अभिनव विकसित कमलके समान नेत्रोंवाला वह, उस अपनी विवाहिता पत्नीको समर्पित नहीं करता। वह गरुडध्वजी सन्धि नहीं चाहता। वह भीषण दिखाई देता है, मानो धूमकेतु हो। जिस तरह सम्भव हो, उस प्रकार विद्याबलों, मूसलों, शूलों और सब्बलोंसे लड़िए । तब अपनी तलवारको पीड़ित करता हुआ राजा कहता है कि इस समय में युद्ध करता हुआ शोभित होता हूँ। अनुचरोंको मारने में कोई यश नहीं है, कोई यह नहीं कहे कि दीनहीनोंको मार दिया गया। अविनीतोंको मारने में कोई दोष नहीं। शीघ्र ही यद्धका हर्षवर्धक घोष करो। दर्दम दानवोंके दर्पको कुचलनेवाले मृगावतीके पुत्रने भी यहांपर, विद्याधर श्रेष्ठोंके द्वारा वन्दनीय अवलोकिनी विद्याको देखनेके लिए प्रेषित किया। भडघटा, गजघटा और रथोंसे सम्पूर्ण प्रतिपक्ष सैन्य को देखनेके लिए वह आयो।
८. Aथणिहे । ९. A सीमंतिणिहे । १०. AP सहेइ । ९. १. AP वीससेणु हो । २. P°दणुहप्प । ३. AP मिगावई। ४. P खगपुंगम । ५. AP°रहहयपउण्णु ।
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