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महापुराण
[५२. १७.१
दुवई-भीमपरक्कमेण भीमेण वि णासियभीमवईरिणा ॥
पञ्चारिय भिडंत भड बेण्णि वि सुरवहुहिययहारिणा ॥ हरिमस्स काई पई मंतु दिठु ___किं मगिउ परतृयरयणु इछ । हक्कारिउ किं णियप्राणणासु एवहि पइसेसहु सरणु कासु। कुद्धइ तिविढि भुवणेकसीहि तडितरलदीहकरवालजीहि । ता धूमसिह भासिउ सरोसु घरदासि हरंतहुं कवणु दोसु । पहिलउं पहुणा मुत्ती मणेण पच्छइ तुम्हहुँ दिण्णी अणेण । सिहिजडिणा सामिविरोहणेण किं एएं जडसंबोहणेण । दरिसावमि तुह जमरायथत्ति लइ पहरु पहरु जइ अस्थि सत्ति । ताबे वि लग्ग ते सेण्णणाह बेणि वि सुरकरिकरसरिसबाह। बेणि वि चालियदिञ्चकवाल बेणि वि जयकारियसामिसाल । बेण्णि वि उग्गामियचावदंड बेणि वि आमेल्जियकुलिसकंड। बाणेहिं बाण णहयलि खलंति तेण्णिहसणरुह हुयवह जलंति । पुणु भीमें मुक्कठ अद्धयंदु
धूमसिहहु णं अट्ठमउ चंदु । रिउदेहमेहि सो पइसरंतु
दिट्ठउ सुहिणयणहु तमु करंतु । घत्ता-मारिवि धूमसिह खयकालणिह खणि हरिमस्सु णिहत्त।।
णवर करंतु कलि भड देंतु बलि असणिघोसु संपत्तउ ॥१७॥
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भीम पराक्रमवाले, तथा भयंकर शत्रुओंको नष्ट करनेवाले, तथा सुरवधुओंके हृदयका अपहरण करनेवाले भीमने लड़ते हुए दोनों सुभटोंको पुकारा, "हे हरिश्मश्रु, तुमने यह कौन-सा मन्त्र देखा? तुमने इष्ट परस्त्रीरत्न क्यों मांगा? अपने प्राणोंके नाथको तुमने क्यों पुकारा ? इस समय तुम, भुवनके एकमात्र सिंह, बिजलीके समान लम्बी करवालरूपी जीभवाले त्रिपृष्ठके क्रुद्ध होनेपर किसकी शरणमें जाओगे?" तब धूमशिखने गुस्से में आकर कहा, कि गृहदासीके अपहरणमें क्या दोष ? पहले राजाने इसका मनचाहा उपभोग किया। फिर उसने यह तुम्हें प्रदान की। स्वामी विरोधी ज्वलनजटीके द्वारा इस मूर्खतापूर्ण सम्बोधनसे क्या? मैं तुम्हें यमराजकी स्थिरता दिखाऊंगा, यदि तुममें शक्ति हो तो शीघ्न प्रहार करो," तब दोनों सेनापति आपसमें लड़ गये। वे दोनों ही हाथीकी सूंड़के समान बाहुवाले थे, वे दोनों ही दिक्चक्ररूपी मण्डलको चलानेवाले थे, दोनों अपने स्वामी श्रेष्ठकी जय बोल रहे थे; दोनोंने ही अपने चापदण्ड उठा लिये थे, दोनों ही वज्रतीर छोड़ रहे थे। आकाशमें तीरोंसे तीर स्खलित हो रहे थे, उनके संघर्षणसे उत्पन्न आग जल रही थी, फिर भीमने अपना अर्धेदु तीर फेंका, जो मानो धूमशिखके लिए आठवां चन्द्र हो, शत्रुके शरीरको मेधामें प्रवेश करता हुआ वह, सुधीजनोंके नेत्रोंमें अन्धकार उत्पन्न कर रहा था।
घत्ता-धमशिखको मारकर, एक क्षणमें क्षयकालके समान हरिश्मश्रको आहत कर दिया। तब केवल अशनिवेग युद्ध करता हुआ और सुभटोंकी दिशा बलि देता हुआ वहां पहुँचा ॥१७॥ १७. १. A वइरिणो । २. A हारिणो । ३. A P हरिमस्सु । ४. A P परतियं । ५. A P पाणणासु ।
६. A तरङ । ७. A हणंतहं । ८. A P पहिली पहुणा । ९.A तं णिहसिवि पर हुववह । १०. AP णिहित्तउ।
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