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-५१. १७. १५ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-इह दाहिणभरहि वणि जलंततणुसारइ ॥
आवासिउं सेण्णु पुप्फदंतकरवारइ ॥१७॥
इय महापुराणे तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारे महामवमरहाणुमण्णिए महाकइपुप्फयंतविरइए महाकम्बे सिविट्ठसिंघमारणकोडिसिलुच्चायणं णाम एकवण्णासमो
परिच्छेओ समत्तो ॥५॥
घत्ता-इस प्रकार दक्षिण भरतक्षेत्रके वनमें जिसमें कि तृणसमूह जल गया है, तथा सूर्यचन्द्रमाकी किरणोंको रोकनेवाले वनमें उसने सैन्यको ठहरा दिया ॥१७॥
इस प्रकार श्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामव्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का त्रिपृष्ठके द्वारा सिंहमारण और कोटिशिला उत्तालन नामक इक्यावनवाँ परिच्छेद
समाप्त हुआ ॥५॥
६. A जलतणकणसार; P जलवणकणसारह। णाम।
७. AP कोडिसिलासंचालणं तिविटुविवाहकल्लाणं
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