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जे सिलाय दीसइ रूवें वम्महु जेहउ
हि संचालिउ
बिहिं बि विवाहु तेहि पारद्धउ खंभि खंभि पज्जलियपईवहिं पवणुद्धूयचिंधपब्भारहिं वज्जंतहिं पडुपडहहिं संखह कामिणिकरयलघल्लियसेसहि वियसियसयदलसरलदलच्छे परिणिय सुंदरेण सा सुंदरि राउ मऊरगीवणिवतणुरुहु अद्धचकि चक्कंकियकरयलु भणि तेण महिकामिणिमाणैणु देव तुरंगगीव बुहणिरेसिडं
महापुराण
जेण जसेण गोत्तु उज्जालिउ ।
पइ पुण्णहिं जइ लब्भइ एहउ ।
पत्ता - तं पुरु पइसिवि विरइयपणयपसायहिं || वडारि णेहु खगवइमहिवइरायहिं ॥ १४ ॥
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[ ५१.१४.९
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कर मंडड रयेणं सुसिणिद्धउ । लंबियमोत्तियदामकलावहिं । मरगयमालातोरणदारहिं | णाणावाइतेहिं असंखहि । दियवरदेव दिण्णआसीसहिं । मियसुविच्छलेन सिरिवच्छै । गठ चरु जहि णिवसइ जगकेसरि । खयरमउडचुंबिय पयसररुहु | दृढभुयजुयअं दोलियपरवलु । भुणवर्णतवासिपंचाणणु । णिसुणि णिसुणि सिहिजडिणा बिलसिउँ ।
नारायण है कि जिसने स्वयंप्रभाके मनका हरण कर लिया है । जिसने शिलातलको आकाशमें घुमा दिया, जिसने अपने यशसे गोत्रको उज्ज्वल किया, जो रूपमें कामदेवके समान है, यदि पुण्योंसे इस प्रकारका पति पा लिया जाये ।
घत्ता - उस नगर में प्रवेश कर जिन्होंने प्रणय प्रसार किया है ऐसे विद्याधर- राजा और मनुष्य- राजामें बहुत बड़ा स्नेह हो गया ॥ १४॥
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उन दोनोंने विवाह प्रारम्भ किया । उन्होंने रत्नकिरणोंसे स्निग्ध मण्डपकी रचना की । खम्भे खम्भेपर प्रज्वलित प्रदीपों लटकती हुई मुक्कामालाओंके समूहों, हवासे उड़ती हुई ध्वजके प्रभारों, मरकत मालाओंके तोरणद्वारों, बजते हुए पडुपटहों-शंखों और असंख्य नाना वाद्यों, कामिनियोंके करतलों द्वारा डाले गये निर्माल्यों, द्विजवर देवोंके द्वारा दिये गये आशीर्वादोंके साथ, जिनकी आँखें विकसित कमलके समान सरल हैं ऐसे, तथा अपने सुधीजनोंके प्रति वत्सल सुन्दर नारायणने उस सुन्दरीसे विवाह कर लिया और दूत वहाँ गया जहाँ विश्वकेशरी, मयूरग्रीव राजाका पुत्र, जिसके चरणकमल विद्याधरोंके मुकुटोंसे चुम्बित हैं, ऐसा चक्रसे अंकित करतलवाला और दृढ़ बाहुबल से शत्रुसेनाको आन्दोलित करनेवाला अर्धं चक्रवर्ती राजा ( अश्वग्रीव ) रहता था । भूमिरूपी स्त्रीके द्वारा मान्य और संसाररूपी वनके भीतर निवास करनेवाले उससे उसने कहा, "हे देव अश्वग्रीव, ज्वलनजटोकी पण्डितोंके द्वारा निरस्त चेष्टा सुनिए। आप जैसे विद्याधर राजाको
१५. १. A रयणं सुसमिद्धउ; P रयणसुसमिद्धउ । २. AP परणिय | ३. A माणण । ४. A पंचाणण । ५. P तुहुं णिरसिउ ।
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