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महापुराण
[५१.९.१३
घत्ता-णियजणणविइण्णु परियाणिवि भूभंगउं ॥ .
रायहु रविकित्ति णविउ पणाविवि अंगउं ॥९॥
हरिबलेहि ससुरउ जयकारिउ तेण सिणेहसाहि वडारिउ । मुयभूसणकरमंजरिपिंगिडे सालउ गाढंगाढ आलिंगिउ ।। हरिसंसुयजलेहिं संसित्तउ सयल णिसण्ण सुमंतु पउत्तउ । दिणयरु तवइ खवइ जिणु कम्मई वम्महु सल्लइ वाणहिं वम्मई। सायरु गिलइ सयलसरिसोत्तई ससहरु पीणइ जणवयणेत्तई । भंजणसत्ति महंत समीरहु वलु अइअतुलु तिविट्ठकुमारहु । एत्थु ण किं पि बप्प कोऊहलु णहँ चवेडचप्पियकुंजरकुलु। एंव सीहु को करहिं णिपीलइ कोडिसिलायलु जइ संचालइ । तो जाणहुँ होसइ पुण्णाहिउ हरि हरिबंदियणाणिहिं साहिउ । आसग्गीवजीवउड्डावणु
ध्रुवु माणेसइ तरुणिहि जोव्वणु। घत्ता-महियर खयरिंद एहु मंतु विरएप्पिणु ।।
जहिं तं सिर्लरण्णु तहिं गय कण्हु लएप्पिणु ॥१०॥ ___घत्ता-अपने पिताके द्वारा किये भ्रूभंगको जानकर अर्ककीर्तिने राजाको प्रणाम कर अपना सिर झुका लिया ॥९॥
१०
१० नारायणकी सेनाने ससुरका जय-जयकार किया। उससे उनका स्नेहरूपी वृक्ष बढ़ गया। बाहुओंके आभूषणोंकी किरण-मंजरीसे पीले सालेका प्रगाढ़ आलिंगन कर लिया। हर्ष के आसुओंके जलसे सींचे गये सब लोग बैठ गये । ( यह ) सुमन्त्र कहा गया कि दिनकर तपता है, जिन कर्मका नाश करते हैं, कामदेव, बाणोंसे मर्मको छेदता है। समुद्र, समस्त नदियोंके स्रोतोंको अपने में समो लेता है । चन्द्रमा जनपदके नेत्रोंको प्रसन्न करता है। पवनमें बहुत बड़ी भंजन शक्ति है, त्रिपृष्ठ कुमारमें अतुल बल है, हे सुभट, इसमें जरा भी कुतूहलकी बात नहीं। अपने नखोंकी चपेटसे गजकुलको चोपनेवाले सिंहको कौन अपने हाथोंसे निष्पीडित कर सकता है ? यदि यह कोटिशिलातलको संचालित कर सकते हैं, तो हम लोग जानेंगे कि इन्द्रके द्वारा वन्दित ज्ञानियोंके द्वारा कथित नारायण पुण्याधिक होंगे। अश्वग्रीवके जीवको उड़ानेवाले यह निश्चयसे तरुणीके यौवन मानेंगे?
घत्ता-मनुष्य और विद्याधर यह मन्त्र रचकर, जहां वह शिलारत्न था वहाँ नारायणको लेकर गये ॥१०॥
१०.१.AP सणेह । २. A पिंगउ । ३. AP गाढु गाढु । ४. तहो चवेड । ५. AP तो । ६. APणाणहिं।
७. AP धुवु । ८. P सिलरम्म ।
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