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[ ५१.७.६
महापुराण विजय तिविट्ठ णाम णिहुरकर समरभारकिणकसणियकंधर। एहु तुरंगगेलु रिउ तहु केरउ आसि विसाहणं हि विवरेरउ । एत्थुप्पण्णउ पुण्णविवाएं
मारेवउ मृगर्वइयहि जाएं। भुयहिं कोडिसिल संचालेवी । वसुह तिखंड तेण पालेवी। परियणसयणहं तुहि जणेवी अण्णु तुहारी सुय परिणेवी। उहयसेढिविज्जाहरराएं
पई होएवढ तासु पसाएं । एंव देव हियवइ संचारिउ संभिण्णे संबंधु वियारिउ ।
घत्ता-ता महुँ णाहेण बंधुसिणेहु° गवेसिउ॥ .
हउं णामें इंदु तुम्हहं दूयउं पेसिउ ॥७॥
अवरु वि पहु तेरउं पहुठाणउं अम्हार पाइक्कणिवाणउं । रिसहहु कच्छमहाकच्छाहिव जिह भरहहु णेषिविणमि खगाहिव । तिह सिहिजडि रविकित्ति तुहारा । जिव सुहि जिंव पुणु पेसणगारा ।
तं णिसुणिवि णरवइ रोमंचिउ आणंदें परिवार पणञ्चिउ । ५ सीरिं पुण्णे सव्व पोमाइय
हरिणा णियभुयदंड पलोइय । पुणु सो दूयउ पहुणा पुजिय तेण वि तक्खणेण गैउं सजिउ । को तौलनेवाले और अचल बलभद्र और नारायण उत्पन्न हुए हैं। विजय और त्रिपृष्ठ नामके वे कठोरकर और समरभार उठानेके कारण श्याम कन्धेवाले हैं । यह अश्वग्रीव तुम्हारा शत्रु है; जो विपरीत करनेवाला विशाखनन्दी था। अपने पुण्यके विपाकसे वह यहां उत्पन्न हुआ है, जो मृगावतीके पुत्र (त्रिपृष्ठ ) के द्वारा मारा जायेगा। वह अपने बाहुओंसे कोटिशिलाका संचालन करेगा, और उसके द्वारा त्रिखण्ड धरतीका पालन किया जायेगा। वह परिजन और स्वजनोंको सन्तोष देगा और तुम्हारी पुत्रीसे विवाह करेगा। उसके प्रसादसे तुम दोनों श्रेणियोंके विद्याधर राजा होगे।" इस प्रकार देवके हृदयमें यह संचारित किया, और फिर संभिन्नने सम्बन्धका विचार किया।
__ घत्ता-तब मेरे स्वामीने बन्धुके स्नेहको खोज की और मैं इन्दु नामका दूत तुम्हारे पास भेजा गया ॥७॥
और भी हे प्रभु, तुम्हारा प्रभुस्थान है और हमारा पाइक्क (पदाति सेवक ) के रूपमें निर्माण ( रचना ) है । जिस प्रकार ऋषभनाथके कच्छ और महाकच्छ राजा थे, जिस प्रकार भरतके नमि और विनमि विद्याधर राजा थे, उसी प्रकार ज्वलनजडी और अर्ककीर्ति तुम्हारे हैं। जिस प्रकार वे सज्जन हैं उसी प्रकार आज्ञा करनेवाले हैं। यह सुनकर राजा रोमांचित हो गया। आनन्दसे परिवार नाच उठा । बलभद्रने सबकी प्रशंसा की। नारायण (त्रिपृष्ठ ) ने अपने भुजदण्डको देखा। राजाने उस दूतका आदर सत्कार किया। और उसने भी तत्काल अपने जाने
४. A णिट्टर। ५. A°भारकसणंकियकंधर । ६. A तुरंगकंछु। ७. A omits रिउ । ८. AP मिगवइयहि । ९. AP उभय । १०. AP °सणेहु । ८.१. AP णमि । २. A पुण्णसत्ति; P पुण्ण सत्त । ३. A ग3; P गमु ।
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