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दुइ वरिस विहरेपणु महियलि माहहु मासहु णिच्चंदइ दिणि अवरण्हइ तिरत्तसंजुत्तहु
महापुराण
घत्ता—संभूयउं केवलु तहु विमलु णाणु तेर्णं तेलोक्कु विदिट्ठ ॥ पत्तउ सामरु अमरवइ जिणु थुणंतु महु भावइ धिट्ठे ॥ ११ ॥
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तुहु जि देउ तुह णवइ पुरंदरु तुग्गु तुह बीहइ दियरु तु गहीरु वरुणा दिउ तु रयतरुसिहि सिहिणा सेविउ तुह पायग्गहिं वाउ विलग्गड तुहुं जमपासवसेण ण बद्धउ तुहुं जि कालु कालहु कालुत्तरु सव्वु वि जाणसि पेच्छसि जेण जि
पुठिवल्लइ वणि तुंबुरुतरुतलि । छेइल्लइ सवणइ मयलंछणि । अचलियपत्तलपविउलणेत्तहु |
तुहुं थिरु तुह पीढुल्ल मंदेरु । कंतिबंतु तुहुं तुह ससि किंकरु । तुहुं अणिणिहि धणएं वंदिउ । तु जि मंतिमंतीसह भाविउ । तो वि तु पहु बाएं भग्गड । जमु तुह सेवाविहिपडिबद्धउ । तुहुं विवाइ वाइहिं दिण्णुत्तरु । तुहुं जि स सव्वाहिउ तेण जि । घत्ता - अट्ठपाडिहेरयसहिउ अट्टमहाधयपंतिसमेउ ॥
समवसरणि थिउ परमजिणु कहइ समत्थैपयत्थहं भेउ || १२||
[ ४९. ११.९
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नन्द राजाने उन्हें आते हुए देखा, उसने उन्हें विशुद्ध आहार दिया, दो वर्ष तक धरतीपर बिहार कर पूर्वोक वन में तुम्बरु वृक्षके नीचे माघ कृष्ण अमावास्याके दिन, अपराह्न में श्रवण नक्षत्रमें तीन रातके उपवाससे युक्त एवं अविचलित पलक विशाल नेत्रवाले ।
घत्ता - उन्हें विमल केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। उससे उन्होंने तीनों लोकों को देख लिया । इन्द्र देवों सहित आया । जिनकी स्तुति करता हुआ वह ढीठ मुझे ( कवि को) अच्छा लगता है ||११||
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देव तुम्हीं हो, तुम्हें इन्द्र नमस्कार करता है, तुम स्थिर हो, तुम्हारा पीठ मन्दराचल है । तुम तपसे उग्र हो, तुमसे दिनकर डरता है, तुम कान्तिवान् हो, चन्द्रमा तुम्हारा किंकर है । वरुण के द्वारा आनन्दित तुम वरुण हो, तुम पापरूपी वृक्षोंके लिए अग्नि और अग्निके द्वारा सेवित हो, तुम्हीं बृहस्पति हो, और वृहस्पतियोंके द्वारा भावित हो, वायु तुम्हारे पैरोंसे लगी हुई है, हे देव तब भी तुम वाए (वायु और वाद) से भग्न नहीं होते; तुम यमरूपी पाशसे आबद्ध नहीं हो, यम तुम्हारी सेवाविधिके लिए प्रतिबद्ध है, तुम्हीं कालके लिए काल हो और कालसे श्रेष्ठ हो, वादियोंके लिए उत्तर देनेवाले तुम विवादी हो, जिस कारणसे तुम सबको जानते और देखते हो, इसी कारण तुम सब, और सबसे अधिक हो ।
घत्ता - आठ प्रातिहार्योंसे युक्त आठ महाध्वजपंक्तियोंसे सहित, समवसरण में स्थित परम जिन समस्त पदार्थों के भेदोंका कथन करते हैं ॥१२॥
४. A omits तेण । ५. A बिट्टु ।
१२. १. P मंदिरु । २. A तवग्गु; P तवंगु । ३ AP मंतु । ४. AP पहु तुहुं । ५. A समत्थु ।
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