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महापुराण
[४८. १६.१
वजट्ठितुलाघणघडियगेहु सिहिदेवहिं दड्ढउ देवदेहु । अवरेक्कहिं फुल्ल ई घल्लियाई अण्णहिं कवई उठवेल्लियाई। अवरेक्कहिं किउ जयेणंदघोसु अण्णहिं णचिउं मणणयणतोसु । अवरेकहिं थुउ संसारहारि अण्णहिं हये झल्लरि पडह भेरि । अवरेक्कहिं पैणमिउ मोक्खगामि अण्णहिं वंदिय जिर्णसिद्धभूमि । अण्णहि अण्णण्णई साहियाई वाहणई मेहवहि वाहियाई। गय णियणिलयहु सुर विहवफार जिणगुणकहरंजियहिययसार । गयणयलि चैरंति चवंति एव जगि कम्मबंधु को महई एंव। पत्ता-णिक्किरिउ करिवि मणवयणंगई परिहरिवि ॥ थिउ सीयलसामि मोक्खमहापुरि पइसरिवि ।।१६।।
१७ पसियउ परमेसरु परमसमणु अम्हेहं वि तहिं जि संभवउ गमणु । पुणु अक्खइ गणहरु सेणियासु सम्मत्तरयणरुइसे णियासु। गयलेसि परिट्ठिइ णाणसेसि णिव्वाणु पराइउ सीयलेसि । तित्थंति तासु विच्छिण्णधम्मु पसरिउ जणवइ रयमइलु कम्मु । विणु वत्तारयसोयारएहिं
भव्वेहिं भवण्णवतारएहि ।
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वज्रर्षभनाराच संहननसे गठित शरीरवाले देवके देहको अग्निकुमार देवोंने जला दिया। कुछ देवोंने फूलों की वर्षा की, कुछ और देवोंने काव्योंका उच्चारण किया। कुछ और देवोंने 'जय' और 'बढ़ो'का घोष किया । कुछ और देवोंने मन और नेत्रोंको आनन्द देनेवाला नृत्य किया। कुछ और देवोंने संसारका नाश करनेवाले उनकी स्तुति की। कुछ और देवोंने झल्लरी, पटह और नगाड़ोंको बजाया। कुछ और देवोंने मोक्षगामी उन्हें प्रणाम किया, कुछ और देवोंने जिनसिद्ध भूमिको वन्दना की। दूसरोंने दूसरोंसे कुछ-कुछ कहा और आकाशपथमें वाहनोंको चलाया । वैभवके विस्तारसे युक्त तथा जिनके गुण-कथनसे अपने हृदयको रंजित करनेवाले देव अपने-अपने विमानोंमें चले गये। वे आकाशतल में चलते हैं और कहते हैं कि विश्वमें कोन इस प्रकार कर्मोका नाश करता है।
__ पत्ता-मन, वचन और शरीरको छोड़कर और निष्क्रिय होकर शीतल स्वामी मोक्षरूपी महानगरीमें प्रवेश करके स्थित हो गये ॥१६॥
परमेश्वर परमश्रमण प्रसन्न हों कि जिससे हमारा भी वहां गमन सम्भव हो। पुनः गौतम गणधर सम्यक्त्वरूपी रत्नकी कान्तिपरम्परावाले राजा श्रेणिकसे कहते हैं."लेश्यासे रहित.ज्ञानशेष शीतलनाथके निर्वाण प्राप्त कर लेने पर उनके तीर्थके अन्तमें वक्ताओं, श्रोताओं और संसार रूपी समुद्रसे तारनेवाले भव्योंके बिना, धर्मसे विच्छिन्न और पापसे मलिन कर्म फैल गया। जो
१६. १. AP जयणंदिघोसु । २. A झल्लरि हय पडह । ३. AP कय बहुविहविहूइ । ४. AP जिणदेहभूइ ।
५. AP चडंति । ६. A मुय।। १७.१. A परमसरणु । २. A अम्हई । ३. AP भवंतर।
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