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-४८. ४. १५ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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णिरुवमसुहसंपावणखणेण रमणीरमणु वि सारइ मणेण । सो कहिं वि ण मेल्लइ सुक्कलेस जिणु पणवइ गेण्हइ चरणसेस । परियाणइ पेच्छइ तमपहंतु अट्ठगुणसारु महिमा महंतु। उदुमाससेसि जीवियपमाणि, आघोसइ सयमहु उर्दूविमाणि । भो गुज्झय बुज्झहि भमियसरहि किं बहुएं जंबूदीर्वैभरहि । मलययदुमसुरहिउ मलयदेसु जहिं णरहिं परिट्ठिउ अमरवेसु । रइकइयवकीलाकोच्छराउ जहिं कामिणीउ णं अच्छराउ। जहिं कामधेणुणिह गोहणाई जहिं कप्परक्झेरिद्धई वणाई। जहिं णिश्चमेव मंगलणिणदु तहिं पुरवरु णामें रायभद्दु । रणरंगतुंगमायंगसीहु
दढरहु णरिंदु जयजयसिरीहु । मुहयंदोहामियरंदचंद
महएवि तासु णामें सुणंद । विसहरवंदारयवंदवंदु
एयह गंदणु होसइ. जिणिंदु। जज्जाहि तावं तुहुं करहि तेव संभवइ णयंरु घरु दिव्वु जेंव ।
घत्ता-ता वइसवणेण तं पट्टणु कंचगु° घडिउं ॥
मणिकिरणकरालु सग्गखंडु णावइ पडिउं ॥४॥
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अनुपम सुखकी संप्राप्तिके क्षणवाले मनसे वह स्त्रीरमण करता है, वह अपनी शुक्ल-लेश्याका कभीका परित्याग कर चुका है, जिनको प्रणाम करता है और उनके चरणरूपी अक्षतोंको ग्रहण करता है। तमप्रभा नरक तक वह देखता है और जानता है, आठ गुणोंसे युक्त और महिमामें महान् । उसके जीवन प्राणके छह माह शेष रहनेपर इन्द्र अपने ऋतु विमानमें कहता है-"हे कुबेर, जिसमें श्वापद परिभ्रमण करते हैं ऐसे जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें मलयवृक्षोंसे सुरभित मलयदेश है। जहां मनुष्योंने अमररूप बना रखा है। रतिकी केतवक्रीड़ामें दक्ष स्त्रियाँ ऐसी मालूम होती हैं, मानो अप्सराएं हों । जहाँ गोधन कामधेनुके समान हैं। जहां वन कल्पवृक्षोंसे सम्पन्न हैं। जहां मंगल शब्द प्रतिदिन होते हैं, वहां राजभद्र नामका नगर है। उसमें युद्धके रंगमें ऊँचे गज और सिंहोंके समान तथा विजयलक्ष्मीके इच्छुक दृढ़रथ नामका राजा था। उसकी अपने मुखचन्द्रसे विशालचन्द्रको तिरस्कृत करनेवाली सुनन्दा नामकी महादेवी थी। नागराजों और देवोंके समूहके द्वारा वन्दनीय जिनेन्द्र, इनके पुत्र होंगे। तुम जाओ और वहाँ इस प्रकार करो कि जिससे दिव्य घर और नगर उत्पन्न हो जायें।
___घत्ता-तब कुबेरने स्वर्णमय नगरकी रचना की, जैसे मणिकिरणोंसे उन्नत स्वर्गखण्ड गिर पड़ा हो ॥४॥ ४. १. A°रमण । २. AP उडुमास। ३. AP उडुविमाणि । ४. P जंबूदीवि भरहि । ५. AP मलयद्दम ।
६. A कप्परुक्खणिदई । ७. मुहइंदो । ८. P ताहं । ९. A णवरु । १.. AP कंचणघडिउं ।
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