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- ४८. ७.६ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
गयं गलियमयजलं विसं रसियपेसलं
करालणहभइरवं कुसेसयणिवासिणि पसूयसयमालियं
बिहुँ विहियजामिण झसाण जुयलं चलं सरोरुह सरोवरं दर्प
पुरंदरणिणं महारयणरासियं
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भमियभिंगकोलाहलं । खरखुरग्गखयभूयलं । कयरवं च कंठीरवं । 'सिरिमुविंदसीमंतिर्ण । भमरपंतियाकालियं । खरयरं खचूडामणिं ।
कुडजुयं ससंकामलं ।
जस्स छत्तत्तयं वह दात्तिणं मणिमयर कुंडलो घिविवि णवकुवलयं सोहं हो देवदेवो जिणो
मयरमंदिरं गज्जिरं ।
रणचित्तियं पीढयं ।
भवणमुज्जलं भावणं ।
धत्ता - इय पेच्छिवि ताए रायहु गंपि "समासियउं ॥ सिवियफलु" तेण कंतहि कंतें भासिउं ||६||
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सिणिमुरुसिहुब्भासियं ।
जस्स लोयत्तयं ।
कुइ गुणकित्तणं । जस्स आहंडलो । . णवइ कमकमलयं । चंडि होही सुहो । खं तपोमणिइणो ।
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मँडराते हुए भ्रमरोंका कोलाहल हो रहा है, ऐसा मदगज, गर्जना में बड़ा चतुर और तीव्र खुरोंके अग्रभागसे भूतल खोदता वृषभ, विशाल नखोंसे भयंकर, शब्द करता हुआ सिंह, विष्णुकी पत्नी और कमलमें निवास करनेवाली लक्ष्मी, भ्रमरपंक्तिसे शोभित पुष्पमालाएँ, रात्रिको करनेवाला चन्द्रमा, आकाशका चूड़ामणि सूर्य, मत्स्योंका चंचल युग्म; चन्द्रमाकी तरह स्वच्छ कुम्भयुग्म, कमलोंका सरोवर, गरजता हुआ समुद्र; सिहोंपर आरूढ़, रत्ननिर्मित आसन ( सिंहासन ), इन्द्रका निकेतन, उज्ज्वल भावन-भवन ? ( यहाँ नाग लोकका उल्लेख नहीं है ); महारत्नराशि और प्रचुर ज्वालाओंसे भास्वर अग्नि ।
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घत्ता - यह देखकर उसने जाकर राजासे निवेदन किया। उसने भी अपनी कान्ताको स्वप्नोंका फल बताया ||६||
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हे सुन्दरी, जिनके तीन छत्र हैं, तथा त्रिलोक जिनका दासत्व वहन करता है और गुण कीर्तन करता है, मणिमय मकराकृति कुण्डलोंवाला इन्द्र, नवकमल अर्पित कर जिनके चरणकमलों की वन्दना करता है, ऐसे वह शुभ देव देव, शान्तिरूपी कमलिनी के लिए सूर्य, जिन तुम्हारे पुत्र होंगे । बुद्धि कान्ति श्री लक्ष्मी कीर्ति हो, गर्भशोधन करनेवाली देवांगनाएँ आयीं, मत्तगजगामिनी
४. Pfणवासिणी । ५. A सिरि उविंद । ६. P सीमंतिनी । ७. AP भवर । ८. A मयंदसुरं ; P मदसि । ९. AP रयणणिम्मियं । १०. P समासिउं । ११. AP सिविनयं ।
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