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महापुराण
[४५.१०.१७
विलासवाससंतई धरित्ति मंगलावई।
पुरं तहिं घरुच्चयं विहाइ वत्थुसंचयं । घत्ता-सूहउ कामसमाणउ कणयप्पहु तहिं राणउ ॥
कणयमाल तहु गेहिणि णं जेलहिहि जलवाहिणि ॥१०॥
११
तओ सो सुवत्तो जिणिंदस्स भत्तो। चुओ देवणाहो हुओ पोमणाहो। सुओ तीई दिव्वो अगवो सुभत्वो। सरूंवेण मारो
बलेणं समीरो। पयावेण सूरो
धणेणं कुबेरो। गईए विसिंदो
जॅईए णिसिंदो। मईए महल्लो
गुणीणं पहिल्लो। रमाए सुरिंदो
खमाए मुणिंदो। पिऊ तुट्ठचित्तो
स पुत्तेण जुत्तो। गओ रिद्वरुक्खं
सरुद्दक्खंदक्खं । . णहालग्गतालं
फलालं लयालं। भमंतालिसामं
मणोहारिणाम। वणं तं पइट्ठो
सयासि?णिट्ठो। तहिं तेण दिट्ठो
मुणीणं वरिट्ठो। गजों द्वारा चन्दन घर्षित है उसके ऐसे तटपर विलासपूर्ण गृहों की पंक्तिवाली मंगलावती नामकी भूमि है। उसमें घरोंसे ऊंचा वस्तु संचय नामका नगर शोभित है।
पत्ता-उसमें सुन्दर कामदेवके समान कनकप्रभ नामका राजा था। कनकमाला उसकी गृहिणी थी, मानो समुद्रकी नदी हो ॥१०॥
तब वह सुमुख जिनभक्त देवेन्द्रनाथ च्युत होकर उससे पद्मनाथ नामक पुत्र हुआ जो दिव्य गर्वरहित, सुन्दर और भव्य था । जो स्वरूपमें कामदेव, बलमें समीर, प्रतापमें शूर, धनमें कुबेर, गतिमें वृषभराज, ज्योतिमें चन्द्रमा, मतिमें श्रेष्ठ, गुणियोंमें पहला, लक्ष्मीमें देवेश, और क्षमामें मुनीन्द्र था । सन्तुष्ट चित्त पिता पुत्रके साथ मनोहर नामके वनमें गया, जिसमें समृद्ध वृक्ष थे, जो रुद्राक्ष और द्राक्षा वृक्षोंसे युक्त था। जिसमें ताल वृक्ष आकाशको छू रहे थे। जो फलों और लताओंसे युक्त था और भ्रमण करते हुए भ्रमरोंसे श्यामल था। उसने वनमें प्रवेश किया। वहीं उसने श्रेष्ठ अनुष्ठानसे युक्त तथा मुनियोंमें वरिष्ठ एक मुनिको देखा।
९. A जलणिहि । ११.१. Pउमणाहो। २. A तेए दिव्वो। ३. AP सुरूवेण । ४. P रुईणं सुचंदो। ५. A रिद्धिरुवं ।
६. A सुरो दक्खदक्खं । ७. P भमंतालिमालं; P adds after this : मरालीमरालं, सुच्छाइसामं । ८.T सिद्धणिट्ठी उत्तमानुष्ठानः।
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