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समवसरण जिणु संठिउ जावेहि पण्ण रहसय वज्जियसंग एकलक्खु सहुं पंचावण्णहि सिक्खुयाहिं निम्महिय रईसह सत्तसहस केवलणाणालहं भयसहास वयसय मणपज्जय
वईतंडियपश्चत्तरदाइहिं
महापुराण
उम्मग्ग वर्द्धति अलियं पयंपंति परवहु णिहाळंति लोहे भजंति रोसेस वति जे मासु भक्खंति मूढा ण वंदति संचरइ जणु छम्मु बहुजण जलसे उ धत्ता - मिच्छा परिणामग्गहे निवडतं ण उवेक्खियं
घोति ।
कामेण कंपंति ।
पारद्धि खेलति । परहणुण वर्ज्जति ।
खग्गाई कति | ते पण पेक्खति । णिचं पि णिति । पई मुइवि कहिं धम्भु । पई मुवि को देउ ।
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लग्गं घणतमदुब्वैद्दे । जगडिंभं पई रक्खियं || १४ ||
[ ४७. १४. ८
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अट्ठासी हुय गणहर तांवहिं । परमरिसिहिं जाणियपुव्वं गहं । सहसहिं पंचसई संपणहि । अट्ठसहस चउसय ओहीसहं । तेरह सहसई विकिरियालहं । णाणधारि दोसासय दुज्जय । रिदुसहसई रिदुसयई विवाइहिं ।
उन्मार्गपर चलते हैं, मधु और मद्य खाते हैं, झूठ बोलते हैं, कामसे काँपते हैं, परवधूको देखते हैं, शिकार खेलते हैं, लोभसे भग्न होते हैं, परधनको नहीं छोड़ते, क्रोधसे भड़कते हैं, तलवारें निकाल लेते हैं और जो मांस खाते हैं वे तुम्हें नहीं देख सकते । मूर्ख तुम्हारी वन्दना नहीं करते, नित्य तुम्हारी निन्दा करते हैं, जन क्षमा धारण करता है, आपको छोड़कर कहाँ धर्म है, संसाररूपी जल के लिए सेतु हो, तुम्हें छोड़कर कौन देव हो ?
घत्ता - मिथ्या परिणामका जिसमें आग्रह है ऐसे घनतमरूपी दुष्पथमें लगे हुए, गिरते हुए विश्वरूपी बालककी तुमने उपेक्षा नहीं की, उसकी रक्षा की ॥१४॥
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जैसे हो जिनवर समवसरण में विराजमान हुए, तो उनके अठासी गणधर हुए। परिग्रहसे रहित पूर्वांगों को जाननेवाले पन्द्रह सौ परममुनि, एक लाख पचपन हजार पाँच सौ शिक्षक थे । कामदेवको नष्ट करनेवाले आठ हजार चार सो अवधिज्ञानी थे । केवलज्ञानके धारी सात हजार थे, विक्रियाऋद्धि धारक तेरह हजार थे, सात हजार पाँच सौ मन:पर्ययज्ञानके धारक थे ।
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३. P खेल्लंति । ४. Preads a as b and b as a l ५. A जणछम्मु; P जहि छम्मू । ६. P दुप्पट्टे । ७. A णिवडंतउ |
१५.१. Padds after this : एए मुणि संजाया तावहि, इंदचंदविसहरमणहर । २. P अट्ठासीस जाया गणधर । ३. AP सिक्खुवाहं । ४. AP बयतंडिय |
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