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[४७. १६.९
महापुराण घत्ता-जिह भरहस्स समीरिओ रिसहेणंगयवयरिओ॥
तिह मई तुह कहिओ इमो पुप्पँदंतजिणपुंगमो ॥१६॥
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इय महापुराणे तिसट्ठिमहापुरिसगुणाकारे महाकइपुष्फयंतविरइए महामग्वमरहाणुमण्णिए महाकग्वे पुप्पँदंतणिब्वाणगमणो णाम सत्तचालीसमो परिच्छेभो समसो ॥७॥
॥जिणेपुप्फयंतचरियं समत्तं ॥
धत्ता-जिस प्रकार ऋषभनाथने कामके शत्रु भरतसे कहा था, उसी प्रकार जिनवर श्रेष्ठ पुष्पदन्तका यह चरित मैंने तुमसे कहा ॥१६॥
इस प्रकार ब्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महामण्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका पुष्पदन्त निर्वाणगमन
नामका सैंतालीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुभा ॥४॥
६. P भरहहो । ७. A पुप्फयंत । ८. P सत्तयालीसमो । ९. AP omit the line |
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