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महापुराण
[४६. १२. ४देवहं देविहिं णउ छेउ अस्थि तेलोकसूरु केवलगभत्थि। चउवीसंह पुत्वंगहं विहीणु अण्णु वि मासहिं तिहिं मुणहि झीणु । वसुमइ विहरिवि तेणेक्कु पुवु संबोहि वि मणुयसमूहु भन्नु । संमेयहु सिहरु समारुहेवि थिउ जोउ मासु पेरंतु लेवि । णामइंगोत्तइं वेयणिययाई आउट्ठिदिसरिसई लहु कयाई। कम्मइयतेयउयारियाई . तिणि वि अंगई ओसारियाई। घत्ता-सियपक्खहु फग्गुणसत्तमिहि परमविसुद्धिइ रिद्धउ ॥
जेट्ठहि णिट्ठियेमलु बहुरिसिहिं सहुं चंदप्पहु सिद्धउ ।।१२।।
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जाहस्स णिवाणि तूराइं वज्जति थोत्ताई किज्जति दीणाई संजंति चंदणई सीयलई जिणतणुहि धिप्पंति अग्गिद पणमंति दीवोहँ दिज्जंति।
पंचमइ कल्लाणि। मंगलई गिज्जंति । दाणाई दिज्जंति । दुरियाई खिज्जति । सुरहियई परिमलई। घुसिणेण 'सिप्पंति । मउँडोह दिप्पंति ।
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थे। अणुव्रतों का पालन करनेवाली नारियां (आर्यिकाएं) पांच लाख थीं। देवों और देवियोंका अन्त नहीं था। केवलज्ञानरूपी किरणवाले त्रैलोक्य सूर्य जिन चौबीस पूर्वांगोंसे रहित और भी
तीन माह कम समझो। एक पूर्व तक धरतोपर विहार कर और भव्य मनुष्यसमूहकोसम्बोधित कर सम्मेदशिखरपर आरोहण कर एक माह पर्यन्तका योग लेकर, नाम-गोत्र वन्दनीय को आयुके समान स्थितिवाला कर, औदारिक-तैजस और कार्मण तीनों शरीरोंको उन्होंने हटा दिया।
पत्ता-फागुन माह के शुक्लपक्षकी सप्तमोके दिन परम विशुद्ध ज्येष्ठा नक्षत्रमें मलको नाश करनेवाले चन्द्रप्रभु अनेक मुनियोंके साथ सिद्ध हो गये ॥१२॥
१३ स्वामीके पांचवें कल्याण निर्वाण होनेपर नगाड़े बजते हैं। मंगल गीत गाये जाते हैं, स्तोत्र रचे जाते हैं, दान दिया जाता है, दोन सुखको प्राप्त हो जाते हैं, दुरित नष्ट हो जाते हैं, शीतल चन्दन और सुरभित परिमल जिनके शरीरपर डाले जाते हैं, केशरसे उसका लेप किया जाता है, अग्नीन्द्र
५. AP देविउ । ६. AP चउबीसई पुव्वंगहं । P अउदारियाई । ८. विसिद्धिइ । ९. A णिट्ठिवि । १३. १. A णाणस्स णिव्वाण । २. AP सज्जंति । ३. वंदणई। ४. A सुरहीअइंधणईं; P सुरहियई इंध
गई। ५. A खोणियहि धिप्पंति । ६. AP लिप्पंति । ७. A मुणि हुववहं दंति; P मणिहयवहं देंति । ८. AP omit दीवोह दिज्जति ।
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