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पुरि णहसिरि व भमालाकंतिहि राउ महापउमड परमाणणु धत्ता - करतरवारिवियारिया विडिय सूर वर्णगया
परियाणिय णिव अत्थाणत्थहु आपणु अक्ख वणवालें तं णिणिवि सो रइयरहंत हु वंद वंद णिज्जु जो बंदहुं जिह जिह तेर्णे देउ णिज्झाइउ भिचलोउ दूसणु परलोयहु णारि मारि भीसण ते दिट्ठी पुत्तहु बालकमलदलणेत्तहु मुक्कडं घरु बहुदुक्खहं भंडरं
घत्ता - सुयरंतो जिणपुंगमं पालइ मुक्कणियंगउ
महापुराण
पंडु ""पुंडरिंकिणि घरपंतिहि । परमविलोयणु पउमामाणणु ।
जेण रिऊ संघारिया । णासिवि भीरु वणं गया ||२|| ३
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एकहिं दिणि तहु अत्थाणत्थहु । नृ ऋणु भूसिउं तिहुवणवालें । दहन्ति गउ अरहंतहु । इंदचंदणाईंदणरंदहुँ । तिह तिह सो णिव्वेड पराइउ । भोड गणित सरिसउ फणिभोयहु । हियवs विसयविरन्ति पइट्ठी । देवि धैरत्ति झत्ति धणयन्त्तहु । लइ उ संसारतरंडउं । इसि प्रीणिंदियसंजमं ॥ सुयएयारह अंगउ ||३॥
उसमें गृहपंक्तियोंसे सफेद पुण्डरीकिणी पुरी नक्षत्रमाला की कान्तिसे आकाशलक्ष्मीकी तरह जान पड़ती है, उसमें कमलके समान आँख, हाथ और मुखवाला महापद्म नामका राजा था ।
घत्ता - जिसके द्वारा हाथकी तलवारसे विदारित और संहारित शूरवीर शत्रु घायल होकर गिर पड़े और भागकर वनमें चले गये ||२॥
[ ४७.२.९
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अर्थ - अनर्थको जाननेवाले उस राजाके दरबार में आकर एक दिन वनपालने कहा, "हे राजन्, वन तीन कालकी शोभासे विभूषित हो गया है ।" यह सुनकर वह कामदेवका अन्त करनेवाले अरहन्तको वन्दनाभक्ति करने के लिए गया । इन्द्र, चन्द्र, नागेन्द्र और नरेन्द्रोंके समूहके द्वारा वन्दनीय उनकी उसने वन्दना की । जैसे-जैसे उस राजाने देवका ध्यान किया, वैसे-वैसे वह निर्वेदको प्राप्त हो गया । (उसने सोचा कि भृत्यलोग परलोकके लिए दूषण हैं, उसने भोगोंको नागके फनकी तरह समझा, उसने नारीको भीषण मारीके रूपमें देखा, उसके हृदयमें विषयोंके प्रति विरक्ति प्रवेश कर गयी । बालकमलके समान आँखोंवाले अपने पुत्र धनवत्तको शीघ्र धरती देकर अनेक दुःखोंके पात्र घरका परित्याग कर दिया, और संसारसे तारनेवाले व्रतको स्वीकार कर लिया ।
घत्ता - जिनश्रेष्ठका स्मरण करते हुए वह मुनि प्राण और इन्द्रियोंके संयम और कामदेवसे रहित एकादश श्रुतांगों का पालन करते हैं ॥३॥
१०. A पुंडरिगिणि ।
३. १. AP णिव । २. AP तं णिसुणेवि रद्दयं । ३ A वंदणभत्ति । ४. P देउ तेण । ५. P परित्ति उत्ति । ६. AP वउ । ७. A सुमरंतो जिणपुंगवं; P सुमरंत हो जिणपुंगमं । ८. AP पाणिि
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