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- ४७.५.३]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
णारीचिंतणु णे करइ दंसणु गंधु मल्ल सरु उपायणु तं परिच्छु जहिं रोसहु भाविवि भावणाउ नयजुत्तिउ कम् अहम् णिणु णिसिद्धउं संणासणेण जोईसरु अड्ढाईज्जहत्थतणु सुंदरु
सासु सुणिह दर्शमासहि ओहिणामणा परिक्खइ कार्ले कालाणणु संप्रावि
धत्ता - दिण्णविवक्खासंकयं सुहलिय सुहमाणियसिवं
जंबुदीवि रविदीवयदरिसइ धरियपरमहिवइबंदिहि कासवगोत्तहु गुत्तस संकहु
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संभाणु उ करफंसणु । णउ अइमत्तपाणेरसभोयणु । होइ सूइ माणाइयदो सहु । दंसणसुद्धिविणयसंपत्तिउ । तित्थयरत्तगोत तें बद्धरं । जायउ प्राणैयकपि सुरेसरु । वीससमुहमाणजीवियधरु | भुंजइ वीसहिं वरिस सहासहिं । धूम पह महि जांव णिरिक्खइ । थिइ छम्माससेसि तहु जीविइ । मुहसोहाजिय पंकयं ॥ भणइ कुलिसि दविणाहि ||४||
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भरहें मुत्तइ भारहवरिसइ । भरियहि यरिहि काळंदिहि | वइरिरणंगणि वज्जिय संकहु ।
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वह न तो नारीका चिन्तन करते और न दर्शन । न भाषण और न हाथ से संस्पर्श, न राग को उत्पन्न करनेवाले गन्धमाल्य ओर स्वर, और न प्राणोंको अत्यन्त मत्त बनानेवाले रसभोजन । उस वस्तुका परित्याग कर देते, जिससे मानादि दोषों और क्रोधकी उत्पत्ति होती । दर्शनविशुद्धि, विनय सम्पन्नता आदि नययुक्त भावनाओंका चिन्तन कर, कर्म-अधर्म और निदानका निषेध कर उन्होंने तीर्थंकर गोत्रका बन्ध कर लिया। संन्यासमरणसे मरकर वह योगीश्वर प्राणतस्वर्गमें सुरेश्वर हुए। साढ़े तीन हाथका सुन्दर शरीर । बीस सागर प्रमाण जीवको धारण करनेवाला, सुखनिधि वह दस माह में सांस छोड़ता और बीस हजार वर्षमें भोजन करता । वह अवधिज्ञानके द्वारा घूमप्रभ नरक पर्यन्त भूमिको जानता । समयके साथ कालकी अवधि समाप्त होनेपर तथा उसका जीवन छह माह शेष रह जानेपर ।
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घत्ता - शत्रुपक्षको शंका उत्पन्न करनेवाले, तथा अपने मुखकमलोंको जीतनेवाले सुफलित सुख और शिवको माननेवाले कुबेरसे इन्द्रने कहा ||४||
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जिसमें सूर्यरूपी दीपक दिखाई देता है ऐसे जम्बूद्वीपमें भरतके द्वारा भुक्त भारतवर्ष में, जहाँ बलपूर्वक राजारूपी वन्दियोंको पकड़ रखा है, ऐसी आदमियोंसे संकुल काकन्दी नगरीका,
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४. १. P करइण । २. पाणु रसं । ३. P वासु । ४. Aणियाणि । ५. AP पाणयकवि । ६. A अद्धाहियतिहत्य; P आहट्ट जि हत्थ । ७. Pमाणु । ८. P सुहीणिहि । ९. A दसमासहि । १०. P ओहिणाणमाणेण । ११. AP संपाविइ ।
५. १. P मंड ।
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