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-४६. ७. १६ ]
महाकवि पुष्पवन्त विरचित
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वासं भूसं चरुयं दीवं ।
काउं पुज्जं सत्थे दिट्ठ | तं गहिऊणं भयैवं भद्दं ।
णाणत्तयणपुष्पसमुहं तं पच्छंता तं पणवंता चंदउरं मणितोरणेदारं उवैसमवेल्लीवासारतं सोहम्मीसाणा देवेसा बाणासणदिवड्ढसयैतुंगो उप्पाइयखाइयसम्मत्तो
दो लक्खा पुत्राणं छिण्णा एस तस्स तरुणत्तणकालो तत्थ वि जायं देवागमणं वइसवणाणि वसुसंदोहे " छड्ढ लक्ख पुवाणं झीणा
तं गायंता तं णचंता । आया देवा रायागारं । जणणीहत्थे दाऊणं तं । पत्ता सग्गं णाणावेसा । सेयंगो णं सेयपयंगो । इक्खाऊ कासव णिवगोत्तो । पण्णासँड्ढसहासाउण्णा । पच्छा हूओ मेइणिवालो । पारीवारवारिघडण्हवणं । भोए भुजंतस्स "ससोहे | अरिहसंखपुण्वंगविलीणा । घत्ता - अण्णहिं दिणि दप्पणयलि वयणु जोतें तें दिट्ठरं ॥ जेथे दड्ढ संसारसुहि हियउल्लडं उठिवट्ठरं ||७||
दिव्वं गंधं पुष्कं धूवं दारं सव्वं सेवाि
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इष्ट दिव्य गन्ध पुष्प धूप वस्त्र भूषा चरु और दीप सबके लिए इष्ट जिन भगवान्को देकर और शास्त्रमें निर्दिष्ट पूजा कर, और ज्ञानत्रयरूपी सघन जलके समुद्र सबके लिए भद्र उन्हें लेकर, उनको देखते हुए उनको प्रणाम करते हुए, उनको गाते हुए और नृत्य करते हुए देवता लोग, मणियोंके तोरणद्वारवाले चन्द्रपुर में राज्य प्रासादमें आये । उपशमरूपी लताके लिए वर्षा ऋतुके समान उन्हें माताके हाथमें देकर सौधर्म ईशान स्वर्गोंके नाना वेशवाले देवेश अपने-अपने स्वर्ग चले गये । उनका शरीर डेढ़ सौ धनुष ऊँचा था मानो श्वेत अंगोंवाला चन्द्रमा हो । उन्हें क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न हो गया है, ऐसे वह इक्ष्वाकुवंशीय और कश्यपगोत्रीय थे । जब उनकी दो लाख और पच्चीस हजार पूर्व आयु बीत गयी, तो यह उनका यौवनकाल था । इसके बाद वह पृथ्वीके राजा बने। वहाँ पर भी देवोंका आगमन हुआ और समुद्रके जलघटोंसे अभिषेक किया गया । जिसमें कुबेर के द्वारा घनसमूह लाया गया है ऐसे शोभायुक्त भोगको भोगते हुए उनका छह लाख पचास हजार चौबीस पूर्व समय बीत गया ।
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घत्ता - एक दूसरे दिन, “दर्पणतलमें मुखको देखते हुए उन्होंने ऐसा कुछ देखा कि जिससे दग्ध संसार सुखों में उनका मन विरक्त हो गया ||७||
७. १. AP चरुवं । २. A इटुं सिट्ठ; P ट्ठिं सिद्धं । ३ A सव्वं भद्दं । ४ A तोरणवारं । ५. P तवसमं । ६. P सतुंगो । ७. AP पण्णा सहसहासा । ८. AP हूयउ । ९. P पारावारि वारि । १०. Pसंदोहं । ११. P ससोहं । १२. A जेणित्थु दट्ठ संसारसुहि ।
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