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महापुराण
[ ४५. २. ११
को देइ मह पुत्तु
गुणरयणसंजुत्तु। ता भणइ सुपुरोहु जइ महसि सुयलाहु। तो कुणसु सहहेउ जिणणाहअहिसेउ । धम्माणुराएण
तं सुणिवि राएण। जरमरणभयहरहं पडिमाउ जिणवरहं । रयणेहिं रइयाउ
कलहोयमइयाउ। मंतेहिं थवियाउ
खीरेहिं हवियाउ। सेंसुहं सुयंतीइ
महिरायपत्तीइ। सिविणम्मि सुहईइ छेयम्मि राईइ। करि सीहु सिरि चंदु दिट्ठो विहारुंदु। घत्ता-वरपुत्तासइ लइयहु अक्खिउ जाइवि दइयहु ।
तेण वि तहु परियाणिउं दंसणफलु वक्खाणिउं ॥२॥
सजणगणमणपयणियपणउ तुह सुंदरि होसइ पियतणउ । कइवयदियहहिं वेल्लि व लैलिउ । लायण्णबहलजलविच्छैलिउ । वउ देविहि गब्भालंकरिउं
ओलक्खिवि देहचिंधु तुरिउ । कंचुइहिं परिंदहु वज्जरिउ
तहु हियवउं हरिसे विप्फुरिउं । ५ संतोस देविहि पासि गउ णं वणगणियारिहि मत्तगउ । करता है-क्या करूं, कहां जाऊँ ? किस देव की आराधना करूं, कौन मुझे गुणरत्नसे युक्त पुत्र देगा ? तब सुपुरोहितने कहा कि यदि तुम पुत्र-लाभ चाहते हो तो शुभके हेतु जिननाथका अभिषेक करो। यह सुनकर राजाने धर्मके अनुरागसे जरा और मरणके भयका अपहरण करनेवाले जिनवरोंकी रत्नोंसे रचित स्वर्णमयी प्रतिमाएं बनवायीं। मन्त्रोंसे उनकी स्थापना की और दूधसे अभिषेक कराया। महीराजकी सुभगा पत्नीने सुखपूर्वक सोते हुए, रात्रिके अन्तिम भागमें हाथी सिंह, लक्ष्मी और प्रभासे बहुल चन्द्रमा देखा।
घत्ता-उसने जाकर श्रेष्ठ पुत्रको आशासे पतिसे कहा । उसने भी उसे बताया और स्वप्नदर्शनके फलकी व्याख्या की ॥२॥
हे सुन्दरी, तुम्हारे सज्जनसमूहके मनमें प्रणय उत्पन्न करनेवाला प्रिय पुत्र होगा। कुछ ही दिनोंमें देवीका लताके समान सुन्दर लावण्यके अत्यधिक जलसे विच्छुरित शरीर, गर्भसे अलंकृत हो गया। शरीरके चिह्नको देखकर कंचुकीने जाकर राजासे कहा । उसका हृदय हर्षसे विस्फुरित हो गया। सन्तोषके साथ वह देवीके पास गया, मानो वनहथिनीके पास मतवाला गज गया हो। उसके
२. AP सुसुहं सुवंतीइ। ३. A सुसईइ । ४. P पच्छम्मि। ५. A चंडु and gloss सूर्यः । ६. A
विहोरुंडु and gloss चन्द्रः । ७. A सिविणयफलु । ३. १. A सज्जणगुणगणपयणियपणउ; P सज्जणजणमणपयणिउ पणउ । २. AP होसइ सुदरि । ३. A
ललिय । ४. A°विच्छलिय । ५. P देहि चिधु । ६. A पासु ।
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