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[४३. १४.९
महापुराण घत्ता-महुँ तूसउ भैरहभग्वणमिउ पउमप्पहुँ णिहयावइ ।।
तिजगिंदहु केरउ एम जसु पुप्फयंतु को पावइ ॥१४॥
इय महापुराणे तिसट्टिमहापुरिसाणालंकारे महाकहपुप्फयतविरइए महामन्वमरहाणुमण्णिए महाकग्वे पउमप्पहणिग्वाणगमणं णाम
तियाळीसमो परिच्छे ओं समत्तो ॥४॥
॥"पउमप्पहचरियं समत्तं ॥
पत्ता-भरत भव्यके द्वारा प्रणम्य, आपत्तियोंका नाश करनेवाले पचप्रभु मुझपर प्रसन्न हों, सूर्य-चन्द्रके समान त्रिजगेन्द्र का यश इस प्रकार कोन पा सकता है ? ॥१४॥
इस प्रकार श्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामव्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्यमें पनप्रम
निर्माण-गमन नामक तेताकीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥६॥
८. A P भब्वभरह।
९. A पउमप्प3; 1 परमप्पह । १०. A P omit the line,
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