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४२. १२.७ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित तवेणुभवाए बुहाणंदिरीए विहामंडलं कुंडलं गं सिरीए । णहे सुम्मए दुंदुही गजमाणो मुहालोयणेणेय विद्धत्थमाणो। अभन्यो वि देवस्स पाए णवंतो भिसं दीसए साणुकंपं चवंतो। चला चामराली मरालालिसेया सुभासाविभासाहिं गिज्जति गेया। असोयदुमो दिव्वपक्खिदरावो जगुम्मोहणो भारहीए पहावो। सुणिज्जति दवेत्थपज्जायभेया मुणिज्जति लोएहिं पंचत्थिकाया। गणिजंति कम्माइं छज्जीवकाया पवड्डंति देहीण चित्ते विवेया।
१० घत्ता-पुच्छंतहु जणहु संदेहतिमिरु संणिरसइ ॥ जलि थलि णहि विवरि तं णस्थि जंण जिणु सासई ॥१२॥
१२ संउ सोलह उत्तरु गणहरह पुव्ववियाणहं मुणिवरहं। दुण्णि सहस चत्तारि सय
णिच्चपउंजियजीवदय । दोणि लक्ख चउपण्ण पुणु सहस तिण्णि सय तहिं जि भणु । अवरु वि पण्णासइ सहिय एत्तिय सिक्खुव सवरहिय । ऐक्कारहसहसई परहं
अत्थि तेत्थु अवहीहरहं । देवपित्तकुसुमंजलिहिं
तेरहसहसई केवलिहिं। चउसयअट्ठारहसहस
वेउम्वियहं सुज्झाणवस । करनेवाले उन्हें दूरसे ही नष्ट कर चुके थे। प्रभामण्डल ( भामण्डल ) ऐसा मालूम हो रहा था मानो तपसे उद्भासित, पण्डितोंको आनन्द देनेवाली लक्ष्मीका कुण्डल हो। आकाशमें बजती हुई दुन्दुभि सुनाई दे रही थी। मुखके अवलोकन मात्रसे विश्वस्त होता हुआ अभव्य भी देवके पैरोंमें नमस्कार करने लगता है. वह अनकम्पापर्वक सन्दर वाणी कहते हए दिखाई देते हैं, हंसोंकी पंक्तिके समान श्वेत चामरोंकी पंक्ति चंचल है। सुभाषाओं और विभाषाओं में गीत गाये जा रहे हैं। दिव्य पक्षीन्द्रोंके शब्दसे युक्त अशोक वृक्ष और विश्वका मोह दूर करनेवाला भारतीका प्रभाव है। द्रव्यार्थ और पर्यायार्थों के भेद सुने जा रहे हैं, लोगोंके द्वारा पंचास्तिकायोंका मनन किया जा रहा है । कर्मादि और छह प्रकारके जीवनिकायोंकी गणना की जा रही है, मनुष्योंके चित्तमें विवेक बढ़ रहा है।
। घत्ता-पूछनेवाले मनुष्यका सन्देहरूपी तिमिर नष्ट हो जाता है। जल-थल-नभ और आकाशमें वह नहीं है कि जिसका जिन कथन नहीं करते ॥११॥
एक सौ सोलह गणधर थे। पूर्वोके ज्ञाता मुनिवर दो हजार चार सौ। नित्य जीवदयाका प्रयोग करनेवाले स्वपरके हितके साधक, शिक्षक दो लाख चौवन हजार तीन सौ पचास, वहां ग्यारह हजार अवधिज्ञानी थे। जिनके ऊपर देवताओंने पुष्पांजलि डाली है, ऐसे केवलज्ञानी तेरह हजार, सद्ध्यानमें लीन विक्रिया-ऋद्धिधारी अठारह हजार चार सौ। मदका नाश करनेवाले
५. A P कोंडलं। ६. A सगंधो वि। ७. P मरालाण्णिसे या । ८. P सुहासाहि भासाहिं । ९. K
दिग्वत्थ but gloss द्रव्यार्थ । १०. A P भासइ । १२.१. A P सउ जिससोलह । २. A P एयारह ।
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