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-४२. ४.५ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित मैंउ करिवि संणासु हुउ वइजयंतीसु । णिवसेइ कंतम्मि ते वइजयंतम्मि। कालेण दीहरह
तेत्तीस सायरह। सरिसाउ माणियर्ड णियंबंध णीणियउं । पुणु तस्स सुहभाउ छम्माससेसाउ। सक्केण जाणियउ
संबंधु भाणियउ। धणयस्स हेण
हरिसुद्धदेहेण । इह जंबुदीवम्मि
भो भरहखेत्तम्मि। चिरु वसियसयरम्मि साकेयणयरम्मि । मेहरहु पहईसु
पिय मंगला तासु । 'हविही सुओ ताहं जिणु जाहिं पियराहं।
पुरु करहि सोवण्णु ता झति बहुवेण्णु। घत्ता-वजहिं मरगयहिं वेरुलियहं गयणुब्भासणु ।
जक्खे "णिम्मविय उं कोसलपुरु पावविणासणु ॥३॥
एत्थंतरए जणमणरामे वासहरे णिसि पच्छिमजामे । मउपल्लंके णिहायंती हंसी विव कमले णिवसंती । पेच्छइ देवी सिविणयपंती तुहिणतारमुत्ताहलकंती। गयणाहं गोमंडलणाहं पिंगलचलणयणं मयणाहं।
पोमं' पीणियपुहईणाहं दामं रंजियभसलसणाह। अर्जन कर, मोहका विसर्जन कर; वह संन्यासपूर्वक मरकर वैजयन्त विमानमें अहमेन्द्र हुआ। वह सुन्दर वैजयन्त विमानमें निवास करता है। तेंतीस सागर पर्यन्त उसने सरस आयुका भोग किया, और इस प्रकार अपना निबन्ध पूरा किया। फिर उसकी शुभभाववाली आयु छह माह शेष बची। इन्द्रने जान लिया। हर्षसे उद्धत है देह जिसमें, ऐसे स्नेहसे उसने धनदसे सम्बन्ध कहा-"इस जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें, जिसमें पहले सगरका निवास था ऐसे साकेत नगरमें राजा मेघरथ है। उसकी प्रिया मंगला है। उनका पुत्र जिन होगा; इसलिए तुम उनके माता-पिताके पास जाओ, नगरको स्वर्णमय बनाओ।" तब शीघ्र ही
__ घत्ता-यक्षने वज़ों, मरकत मणियों-वैदूर्योसे आकाशचुम्बो पापोंका नाश करनेवाले बहुरंगे अयोध्यानगरका निर्माण किया ॥३॥
इसी बीच जनमनोंके सुन्दर निवासगृहमें रात्रिके अन्तिम प्रहरमें कोमल पलंगपर सोती हई, जैसे हंसिनी कमलोंमें निवास करती है, हिम तार और मोतियोंके समान कान्तिवाली वह देवी स्वप्नमाला देखती है । गजनाथ वृषभराज पीली और चंचल आँखोंवाला, सिंहा पृथ्वीनाथको
८. A P मुठ । ९. A P तं । १०. P णियबंधणियउ । ११. A होही । १२. A बहुपुण्णु । १३. A P णिम्मियां । ४. १. A लच्छीवियसियकमलसणाहं: Pपोमापीणिय ।
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