________________
महापुराण
[४०. १.९णाणेणं अपमाणयं सँवराणं पि पमाणयं । पविहियभव्वसुरीयम णिदियसोंडसुरायमं । जं तवतावेणुग्गयं
जेण वीयराउग्गयं। अणुहुत्त संसारयं णो बद्धं हरिसा रयं। दूर झियसंसारयं
ण हि संसासंसारयं । देवासुरकंपावणं
जं देवं कं पावणं । जयपायडियसयारयं सिद्धिपुरंधिसयारयं। कंतं तीइ अयारयं पढ़मट्टाणि अयारयं । बीएँ सरहंकारयं
अरुहं णिरहंकारयं। उयरलीणसयलक्खरं मंतेसं परमक्खरं । भुवणकुमुयवणसंभवं तं वंदे हं संभवं ।
ओसारियअसिआरसं ''विऊणं असिआउसं। भणिमो संभवसंकहं जोणीमुहदुहसंकहं । घत्ता-तियसिंदफणिदहिं खयरणरिंदहिं जं थुम्वइ कयपंजलिहिं ।
तं जिणगुणकित्तणु महुं सुकइत्तणु अमिउं पियह कण्णंजलिहिं ॥१॥ माण किया है । जो अनेक नयोंसे प्रमाणको स्थापित करनेवाले हैं, जो ज्ञानसे अप्रमाण ( सीमा रहित ) हैं; और जो स्वपरको ज्ञानरूपी लक्ष्मीको प्राप्त करानेवाले हैं, जिन्होंने भव्यजनोंके लिए देवोंका आगमन करवाया है, जिन्होंने मद्यको प्रशंसा करनेवाले शास्त्रोंकी निन्दा की है, जो तपभावसे उग्र हैं और जिन्होंने वीतराग भाव उत्पन्न किया है, जिन्होंने अनन्त सुखका अनुभव किया है, जो हर्षसे पापमें लिप्त नहीं हैं, जिन्होंने संसारको छोड़ दिया है, और जो प्रशंसा या अप्रशंसामें रत नहीं हैं, जो देव और असुरोंको कपानेवाले हैं, उस देवके समान पवित्र कौन है ? जिन्होंने जगमें सदाचारको प्रकट किया है, जो सिद्धिरूपी इन्द्राणीमें सदारत हैं, जो मुक्तिरूपी कान्ताके दूतरहित स्वामी हैं, जिनके नामके प्रथम अक्षरमें 'अ' और दूसरे स्थानमें 'र' सहित हकार है ( अर्थात् अर्हत् ), जिसके भीतर समस्त अक्षर लीन हैं, जो मन्त्रेश और परम अक्षर हैं, जो भुवनरूपी कुमुदवनके लिए चन्द्रमा हैं, ऐसे उन सम्भवनाथकी मैं वन्दना करता हूँ। जिन्होंने लक्ष्मी और आयुका निवारण कर दिया है, ऐसे पंचपरमेष्ठीको प्रणाम कर जन्म दुःखको शंकाका नाश करनेवाले सम्भवनाथकी कथा कहता हूँ।
__ घत्ता-देवेन्द्रों, नागेन्द्रों और विद्याधरेन्द्रोंके द्वारा जिनको हाथ जोड़कर स्तुति की जाती है, ऐसे जिनके गुणकीर्तन और मेरे सुकवित्वरूपी अमृतको कर्णरूपी अंजलियोंके द्वारा पियो ॥१॥
३. A P add after this: देवं जं सुपमाणय; T seems to omit it. ४. P सवरे दरिसियमायमं । ५. P adds after this : सवरेवि परमायमं; T seems to omit it | ६. Pसुरामयं । ७. A पढमढाणअयारयं । ८. A सुमहियसरहंकारयं । ९. A P add after this: पाइय ( A झाइय) णिरहंकारयं, पावियसाहुक्कारयं । १०. AT ओहामिय; P ऊसारियं । ११. A भरिऊणं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org