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महापुराण
[ ४१. ११.३
अच्छइ जाम सपुत्तु
रक्खइ पोसइ माभीसइ जणु । गय छत्तीस लक्ख लग
सहुं पुव्वहं सिरिसोक्खसमिद्धे । मुयणभाणु णहि णयणइं ढोयइ ता गंधवणयरु अवलोयइ। पेच्छइ सत्तभूमिघरसिहरई पेच्छइ जालगवक्खई पवरई। पेच्छइ धेयमालउ उल्ललियउ पेच्छइ पुत्तलियउ चित्तलियउ । पेच्छइ चंदसाल मुहसालउ पेच्छइ लेहसाल गयसालउ । पेच्छइ दाणसाल णडसालउ मणुयारोगसाल असिसालउ । पेच्छइ ह₹मग्ग च उदारइं
पेच्छइ पहु आरामविहारई। इय पेच्छंतहु तक्ख णि णट्ठउ . तहिं तं पुरु पुणु तेण ण दिट्ठउ । घत्ता-णासंतें णयरें साहियउ णासु अत्थि नृर्वरिद्धिहि ॥
किं णरु रइपरवेसु परिभमइ उज्जम करइ ण सिद्धिहि ॥११॥
१२
ता लोयंतिएहिं संबोहिउ
आऐणिदें ण्ह विउ पसाहिउ । उट्ठिउ सयलदेव डिडिमसरु
चडिउ विचित्तहि सिवियहि जिणवरु।' णरखेयरसुरेहिं पणवेप्पिणु
बाहुदंडखंधेहिं वहेप्पिणु। णिहियउ पुरबाहिरि णंदणवणि मग्गैसिरइ सिइ बारहमइ दिणि ।
अवरोहइ णियसंभवरिक्खइ अप्पुणु अप्पउ भूसिउ दिक्खइ । लगे । इस प्रकार जबतक वह अपने पुत्रों-परिजनके साथ रहते हैं, और लोगोंकी रक्षा-पालन करते और अभयदान देते हैं, तबतक उनके स्त्री-सुखसे समृद्ध साढ़े छत्तीस लाख पूर्व वर्ष बीत गये । एक दिन विश्वसूर्यकी आंखें आकाशकी ओर जाती हैं, वह वहां गन्धर्व नगर देखता है । वह सात भूमिवाले गृहशिखर देखता है, जालोंके विशाल गवाक्षोंको देखता है, उड़ती हुई ध्वजमालाओंको देखता है, वह चित्रित पुतलियोंको देखता है, वह चित्रशाला और मुख्यशाला देखता है। वह लेखशाला और गजशाला देखता है। दानशाला और नटशाला देखता है। बाजार मार्ग और चारद्वार देखता है, राजा आराम और विहार देखता है। इस प्रकार उसके देखते हुए हो वह नगर तत्काल नष्ट हो गया। फिर उसने उस नगरको नहीं देखा।
पत्ता- नष्ट होते हुए नगरने मानो यह कहा कि नृप-ऋद्धिका भी नाश होता है। मनुष्य रतिके अधीन क्यों घूमता है। सिद्धिके लिए वह प्रयत्न क्यों नहीं करता ॥११॥
१२ तब लोकान्तिक देवोंने उन्हें सम्बोधित किया, आये हुए इन्द्रने उनका अभिषेक किया। समस्त देवोंका डिडिम स्वर उठा। जिनवर विचित्र शिविकापर चढ़ गये। प्रणाम कर मनुष्य, देव और विद्याधरोंने अपने बाहदण्डों और कन्धोंसे उसे ले जाकर नगरके बाहर नन्दनवन में रख दिया। माघ माहके शुक्लपक्षको द्वादशीके दिन अपराह्न में अपने जन्मनक्षत्रमें उन्होंने स्वयंको
५. A णयरि । ६. A धयमालाउल्लं । ७. P हट्टमग्गि । ८. A P णिवरिद्धिहि । ९. A परवसु
मूढमइ उज्जम् । १२. १. A आइवि इंदें; T आयंदेण आगतेनेन्द्रेण । २. A मग्गसिरासिइ; P माहमासि सिह ।
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