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- ४०. १२.३५ ]
समासुरा सिमुग्गया
रसुद्धुरा
सुसाइया
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सुवत्तया
संकिया
सरूवया
सुगंधया
सकारणा
ससंभवा
ससंगया
रयासवं
याणिही
अहं गया ण ते या
सरायया
खयं गया
सदिया णिबिंदियाँ साहिओ
कुकम्मरं कति जे
गे
परंतु मा
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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
सुरासुरा ।
समुग्गया ।
मी गिरा ।
अणाइया ।
अवत्तया ।
सुज्झियो ।
अरूवया ।
अगंधया ।
अकारणा ।
असंभवा ।
असंगया ।
पुणो णवं । तवोविही ।
अहं गया ।
वरायया ।
समायया ।
महादिया ।
अनिंदिया |
णिवंदिया |
पबोहिओ ।
सुयंतरं ।
कुबुद्धि ते ।
पुरीया ।
ण ताण मा ।
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आदरणीय सुन्दर सुर और असुर आये। उनके मुखसे सभी दिशाओंमें व्याप्त होनेवाली रससे परिपूर्ण यह वाणी निकली - " आप पर्यायकी अपेक्षा आदि हैं, और द्रव्यकी अपेक्षा अनादि । आप अत्यन्त व्यक्त हैं और अव्यक्त हैं, आप रससे युक्त हैं, और रससे रहित हैं, आप स्वरूपवान् हैं और अरूप हैं, आप गन्धयुक्त हैं ओर गन्धहीन हैं, आप कारणसहित हैं और अकारण हैं । आप संसारसहित हैं और संसारसे रहित हैं, ज्ञानसे युक्त होकर भी परिग्रहसे रहित हैं, कर्मोंका आश्रव होनेपर भी आप नये हैं। आप दयाकी निधि और तपका विधान करनेवाले हैं । भंगसे रहित हे देव, जो बेचारे देव आपको नमन नहीं करते वे नरकको प्राप्त होते हैं । रागसहित दूसरोंको ठगनेवाले ( मायावी कपटी ) महाद्विज क्षयको प्राप्त होते हैं । द्रव्येन्द्रियोंसे सहित, भावेन्द्रियोंसे रहित, मनुष्योंसे वंचित जो कुकर्मोंका प्रतिपादन करनेवाले शास्त्रान्तरोंको कहते हैं वे खोटी बुद्धिवाले होते हैं । जो पहाड़ों में और नगरियोंमें उन्हें पढ़ते हैं ( शास्त्रोंको पढ़ते हैं ) उन ब्राह्मणों
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२. P adds after this: सतच्चया, अतच्चया । ३ AP संगंधया । ४. P दयामही । ५. PA णिवंदिया । ६. A omits this foot । ७. P कुकम्मदं । ८. AP गएसु वा । ९. P पुरेसु वा ।
१०. A पत मा ।
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