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- ४१. ९.२ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
जिणण्हवणविसेसे वाहरामो समीरं ||७|| कर्यमयरविमाणं देहभाभासमाणं । जिवण वसेसे वाहरामो कुबेरं ||८|| वैरेंविसवसहंदुक्खित्तपायं महंतं । जिणण्हवणविसेसे वाहरामो तिक्ख ||९|| णवकुवलयमालामालियं कोंतद्दत्थं । जिणण्हवणविसेसे वाहरामो ससंकं ॥ १० ॥ २० अहिणवरविवण्णं कुम्मेयैट्ठीणि सणं । जिणण्हवणविसेसे वाहरामो फणीसं ॥११॥ घत्ता - णिय वाहणपहरणपियर मणिचिधावलिहिं विराइय || इंदे हुं इंदावाहणए लोयवाल संप्राइ ॥८॥
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चडुलगमणसीलं लंघियायासपारं विमलमणिवियाणं" मंदरहीसमाणं यमघणदुक्खा कपंकावहारं सगणेर्गुणगणालं 'भोलभीमच्छिवत्तं फणिवलय के रेग्गुग्गिण्णसूलं दुरिक्खं अमयमयसरीरं कूरकंठीरवत्थं जणणयण सुकं संकेमुच्छिण्णसंकं मणिपुरियफणालं दित्तदिश्चकवालं
विवरणिवास रम्मपोम्मावईसं
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एवं पत्ते पंकयणेत्ते विस्से देवे णविऊणं दुहणासणयं सुहसासणयं दब्भासणयं ठविऊणं ।
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जो मानिनी स्त्रियों में राग उत्पन्न करता है, जो चंचल और गमनशील है, जो आकाशको सीमाको लांघ जाता है, ऐसे समीरको में जिनेन्द्रके अभिषेक - विशेष में बुलाता हूँ। जो विमल मणियोंका जानकार है, जो उत्तर दिशाका अधिपति है, जिसका विमान मकराकृति है, जो देहकान्तिसे भास्वर है, जो अधनके दुःख और आतंककी कीचड़का अपहरण करनेवाला हैं, ऐसे धनद कुबेरको मैं जिनेन्द्र अभिषेक - विशेष में बुलाता हूँ। जो अपने गणों और गुणगुणोंका आश्रय है, जो भालपर
आंखों वाला है, श्रेष्ठ वृषभके कन्धेपर जो पैर रखे हुए है, जो नागों के बलयवाले हाथकी अंगुलियों में त्रिशूल उठाये हुए है, ऐसे दुर्दर्शनीय महान् रुद्रको में जिनेन्द्रके अभिषेक-विशेष के समय बुलाता हूँ। जो अमृतमय शरीरवाला है, जो कण्ठीरव ( सिंह ) पर स्थित है, जो नवकुवलयमालासे शोभित है, जिसके हाथमें भाला है, जो जननेत्रोंके लिए अमृतजल है, चिह्न सहित तथा शंकाओं को दूर करनेवाला है, ऐसे चन्द्रको में जिनेन्द्र के अभिषेक - विशेष में बुलाता हूँ । जिसका फणसमूह मणियोंसे स्फुरित है, जिसने दिशामण्डलको प्रदीप्त किया है, जो अभिनव सूर्यके रंगा है, जो कूर्मकी हड्डियोंपर आसीन है, जिसका निवास महीविवर है, जो सुन्दर पद्मावतीका स्वामी है, ऐसे फणोशको मैं जिनवरके अभिषेक - विशेष में बुलाता हूँ ।
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घत्ता- अपने-अपने वाहन, प्रहरण, प्रिय रमणी और चिह्नोंकी पंक्तियोंके शोभित लोकपाल, इन्द्रके आह्वानपर इन्द्रके साथ आये ॥८॥
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इस प्रकार कमलनयन के प्राप्त होनेपर सब देवोंको नमस्कार कर दुःखनाशक सुखका शासन
१७. A 'विताणं । १८. A P कणयमयविमाणं । १९. P°तंकसंकावहारं । २०. A सगुणगुणं । २१. AP भीमच्छतं । २२. A वरविसविसहृत्थं खित्तं ; P वरसियवसहपुट्ठे खित्तं । २३. A करम्भणं । २४. A मालिया कुंत हत्थं । २५. A सुक्क मुच्छिण्ण; P सक्कमुच्छिष्णं । २६. A P कुम्पट्ठी । २७. A रवण्णं । २८. A फणिदं । २९. A सहु देवाणंदएण । ३०. AP संपाइय । ९. १. P दुहुणासणयं ।
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