________________
-४०६.४]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित दीहरद्धीसमाणं खणेणं खणं
कोडिलक्खा गया तीस जइया घणं । जित्तसत्तसए कम्मणिमुक्कए पंत्तिए बीर्य तित्थंकरे दुक्कए । कत्तिए पुण्णिमासीइ भे पंचमे सोमंजोए दुजोयावलीणिग्गमे । तइउ तइया तिणाणी समुप्पण्णओ इंदु इंदो रवी कंपिओ पण्णओ। आइया भावणा जोइसा विंतरा सायरा भासुरा कप्पवासी सुरा। अंकुसो भामिओ देहभाधारिणा चोइओ वारणो झत्ति जंभारिणा। णञ्चमाणा परे गायमाणा परे धावमाणा परे खेलमाणा परे । "सट्टहासा परे गजमाणा परे सीहसद्दा परे संखसहा परे। छाइयासारसा सारसा सासुरा ''चित्तचारेहिं पत्तेहि पत्ता सुरा । घत्ता-पुरु परियंचेप्पिणु घरु जाएप्पिणु जणणि हि देप्पिणु सिसु अवरु ।।
पियरइं पुज्जेपिणु कर मउलेप्पिणु लइउ सुरिंदें तित्थयरु ।।५।।
२०
जिणरूवरिद्धि पेच्छंतियइ
सुरवरपंतिइ गच्छंतियइ । तक्खणि तारायणु लंघियउ
सुरसिहरिसिहरु आसंघियउ । पविलोइय पंडुर पंडुसिले
सा खंडससंकसमाण किले। ता तहिं सईइ सई धारियउ करिकंधराउ उत्तारियउ । दिन रत्नवृष्टि की गयी। फिर जितशत्रुके पुत्र दूसरे तीर्थंकर ( अजितनाथ ) के कमसे निवृत्त होनेसे लेकर दीर्घ समुद्र प्रमाण तीस करोड़ वर्ष समय बीतनेपर कार्तिक शुक्ला पूर्णमासीके दिन मृगशिरा नक्षत्र में दुर्योगावलीसे रहित सौम्ययोगमें तीन ज्ञानधारी सम्भवनाथका जन्म हुआ। इन्द्र, इन्दु, और नागराज कांप उठे। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषदेव और भास्वर कल्पवासो देव आदरपूर्वक आये । शरीरकी कान्तिके धारक इन्द्रने अपना अंकुश घुमाया और शीघ्र अपने हाथीको प्रेरित किया। कोई नाच रहे थे, कोई गा रहे थे, कोई दौड़ रहे थे, कोई खेल रहे थे। कोई अट्टहास कर रहे थे, कोई गरज रहे थे। कोई सिंहगर्जना कर रहे थे। कोई शंख बजा रहा था। दंवोसे पृथ्वी और आकाश छा गये। उत्कृष्ट लक्ष्मीसे युक्त देवों के साथ देव नाना प्रकारकी प्रवृत्तिवाले वाहनोंके साथ आये ।
घत्ता-नगरकी परिक्रमा कर घर जाकर, माताको दूसरा पुत्र देकर, माता-पिताकी पूजा कर और हाथ जोड़कर जिनेन्द्र भगवान्को ले लिया गया ॥५॥
जिनेन्द्रकी रूपऋद्धि देखती हुई, देवताओंकी कतार जाती हुई, शीघ्र तारागणोंको लांघती हुई सुमेरुपर्वतके शिखर पर पहुंची। वहां सफेद पाण्डुक शिला देखी जो चन्द्रमाके खण्डके समान थो । वहां उसने इन्द्राणीके साथ उन्हें उठा लिया और हाथीके कन्धेसे उन्हें उतारा । प्रभुको
७. AP पत्तए । ८. A बीइ तित्थंकरे । ९. A सोम्मजोए। १०. A इंदु इंदो रई कि पि उप्पण्णओ; P सहसु लक्खणहं वसुअहियसंपुण्ण प्रो। ११. A देहभावारिणो; P देहसाधारिणा। १२. A जंभारिणो । १३. AP खेल्लमाणा । १४. A सद्दहासा । १५. P संखसद्दा परे पडहसद्दा परे । १६. A
चित्तधारेहि; P चित्तयारेहि । ६. १. AP पंडुसिला। २. AP किला ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org