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अमरउलं चिर्य भिश्व उलं सो भद्दे तुह दिण्णवरो
वज्जिणा धम्मकज्जं तओ पीणियं एत्थ सावत्थिरायस्स गेहे जिणो जाहि ताणं तुमं होहि तोसायरो तामयासाहिवाणाइ माट्टणं सव्वमालयं सुरयं तप्प आगया गव्भसं सोहर्णेत्थं इरी जाम छम्मास ता संपयालिंगणे फग्गुणे मासए सुकपक्खं तरे सिंधुरायारधारी सुद्देणुण्णओ णारिदेहे थिओ सुद्धधाउत्तए धम्मचंदस्स सच्चं दिमाणंदिया free माणिक्करासी पुणो घत्तिया
महापुराण
जस्स घरं तिजगं विडलं । होही तणओ तित्थयैरो ।
धत्ता - तं णिसुणिवि सुंदरि सरम हिहरदरि रोमंचिय पुलएण कि । महुसमयहु वत्तइ पोसियसोत्तइ पणइणि पियमाहविय जिह ॥४॥
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चिंतियं चितणिज्जं मेणे भावियं । जक्ख होही सुसेणास ईणंदणो । वासवित्ताइरिद्धीपवित्तीयरो । दवणाण वेव्वियं पट्टणं । सव्वकालंघिवं सव्वसोक्खावहं । कंति' कित्ती दिही लच्छि बुद्धी हिरी । भम्मट्ठी कया राइणो पंगणे । पंचमे रिक्खए अट्ठमीवासरे । 'पुज्जगेवज्जदेवो समोइण्णओ । वारिबिंदु व्व राईविणीपत्तए । देवदेवेण मायापिऊ वंदिया । दोस संखेहिं पक्खेहिं णिव्वत्तिया ।
[ ४०.४. १३
जिसका स्नानपीठ है, विशाल त्रिजग, जिसका घर है, हे कल्याणि, वरोंको देनेवाला तुम्हारा ऐसा तीर्थंकरपुत्र होगा ।
घत्ता - यह सुनकर कामरूपी पर्वतकी घाटी वह सुन्दरी पुलकसे रोमांचित हो उठी मानो वसन्तके कानों को पोषित करनेवाली वार्ता प्रणयिनी कोयल पुलकित हो उठी हो ॥४॥
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उस अवसरपर इन्द्रने चिन्तनीय कर्म की अपने मनमें चिन्ता और भावना की ओर यह धर्मकार्य यक्षसे कहा - 'हे यक्ष, श्रावस्तीके राजाके घरमें जिन भगवान् सती सुषेणाके पुत्र होंगे, तुम वहाँ जाओ और सन्तोष उत्पन्न करनेवाली गृह द्रव्य आदि मनोहर ऋद्धियां उत्पन्न करो ।' इस प्रकार आकाश के राजा ( इन्द्र ) की आज्ञासे कुबेरने रत्नोंकी वृष्टि और नगरकी रचना की । वह नगर स्वर्णनिर्मित घरों और सूर्यकान्त मणियोंकी प्रभासे युक्त था । उसमें सब कालके वृक्ष थे और वह सर्व प्रकार के सुखोंका घर था । शीघ्र ही गर्भ संशोधन करनेवाली देवियाँ, कान्ति-कीर्तिधृति - लक्ष्मी - बुद्धि और ह्री, इन्द्रको आज्ञासे वहाँ आयीं । जब छह माह शेष रह गये तब सम्पत्तियों से आलिंगित राजाके आँगन में स्वर्णवृष्टि हुई । फागुन माह के शुक्ल पक्षमें अष्टमीको पांचवें मृगशिरा नक्षत्र में गजका आकार धारण करनेवाला, सुखसे उन्नत पूर्वग्रैवेयकका देव अवतीर्ण हुआ और शुद्ध धातुवाले नारीरूप में इस प्रकार स्थित हो गया मानो कमलिनी पत्रपर जलकण हो । जिनेन्द्रकी शोभासे आनन्दित होनेवाले माता-पिता की देवदेवने वन्दना की । फिर नौ महीने तक प्रति
६. A विय; P प । ७. P तित्यहरो । ८ Pजह
५. १. A मणे जाणियं; P कज्जयं जाणियं । २. AP मावड्ढणं । ३. A सूरयंतं पहं । ४. A सोहणत्थे इरी and gloss इरी त्वरिता; T इ दूरी; PK सिरी । ५. P कित्ति कंती । ६. P पुव्वगेवज्जं ।
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