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- ३८. २२.१५ ]
णवकणयवण्णु अ
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जय भव भवंत जय भूयेणाह जय गोरिरमण
जय तिउरडण
जय मोक्खमग्ग
जय सोमसीस
जय णायहारसुतिलोयणाससुरयंतवित्तणीसरियविमल जय वेयभासि डिंभ कंपावियक्क
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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खमभावु पुण्णु । अमराहिवेण ।
जय दाणवंत । विरइयविवाह |
जय सुविसगमण |
जय मयणमण । णिग्गंथ णग्ग |
जय तिहुवणीस | भूसियसरीर । हर हरविलास |
पब्भाररत ।
चउवयणकमल ।
पसुवहपयासि । जय परमबंभ | कयधम्मचक्क ।
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इन्द्र ने उनकी स्तुति शुरू की - " आप नवस्वर्णवर्ण के समान हैं, आपका क्षमाभाव पूर्ण हो चुका है, भवका अन्त करनेवाले हे शंकर आपकी जय हो । दानशील आपकी जय हो । हे भूतनाथ ( सकल प्राणियों के स्वामी ), आपकी जय हो । विवाहसे विरक्त आपकी जय हो । गौरीरमण (पार्वती सरस्वती से रमण करनेवाले ) आपकी जय हो, सुवृषगमन ( धर्मका प्रवर्तन करनेवाले, बेलपर गमन करनेवाले ) आपकी जय हो । त्रिपुर दहन ( त्रिपुरराक्षसका दहन करनेवाले और जन्म जरा और मरणका नाश करनेवाले ) आपकी जय हो, मोक्षमार्ग ( मोक्षमार्ग स्वरूप, बाण छोड़नेवाले ) आपकी जय हो, हे निर्ग्रन्थनग्न आपकी जय हो । हे सोमशिष्य ( शान्तशिष्य, चन्द्रमस्तक ) आपकी जय हो । त्रिभुवनस्वामी ( त्रिलोकस्वामी, त्रिपथगा स्वामी ) आपकी जय हो । हे नायधार ( सन्मार्ग धारण करनेवाले और नागोंको धारण करनेवाले ) आपकी जय हो । भूषित शरीर ( अलंकृत शरीर, भभूतसे अलंकृत शरीर ) आपकी जय हो । हे सुतिलोयनाश ( त्रिलोकका नाश करनेवाले, तीन नेत्रोंको धारण करनेवाले ) हे हर ( शिव, धर्मंधर ) आपकी जय हो, हरविलास ( क्रीड़ा रहित विशिष्ट क्रीड़ावाले ) आपकी जय हो । सुरयंतवित्त प्राग्भाररक्त ( सुरतिका अन्त करनेवाले, चरितके व्रतमें लीन रहनेवाले, सुरतिमें अन्ततक प्रयत्नशील रहनेवाले ) णीसरियविमल ( जिससे विशिष्ट मल अलग हो चुके हैं, ऐसे जो चार मुख रूपी कमलवाले हैं ।
वेदभाषी ( ज्ञानको प्रकाशित करनेवाले, वेदको प्रकाशित करनेवाले ) आपकी जय हो । पसुवह पयासी ( पशुवध करनेवाले, पशुओंके लिए भी पथ प्रकाशक ) आपकी जय हो । निर्दग्धदम्भ ( दम्भको जलानेवाले, निकृष्ट दम्भवाले ) आपकी जय हो । हे परम ब्रह्म (परमात्मस्वरूप, ब्रह्मा, विष्णु, और महेश स्वरूप ) आपकी जय हो, अकंको कम्पित करनेवाले हे धर्मचक्र २२. १. P भूवणा । २. A निद्दंदडंभ |
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