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महापुराण
[३९. ७. १३.घत्ता-जणणेत्तई जहिं जि णिहित्तई तहिं जि णिरारिउ लग्गई ।।
बुहयंदहु तासु मुणिंदहु को वण्णइ तणुअंगई |७ .
तं वदिवि चिंतइ सयरु एंव किं एहा होंति ण होंति देव । एहउ सुरूवु णउ वम्महासु पुणु चवइ णिवइ दरविये सियासु । मुँणि किं तुह किर वेग्गु थियउ भणु किं जोवणु वणजोग्गु कियउ । तं सुणिवि भणइ मायारिसिंदु झिज्जंतु ण पेक्खहि पुण्णिमिदु । भरियउ पुणु रित्तउ होइ राय सासय किं चिंतहि अब्भछाय । तणु धणु परियणु सिविणयसमाणु तसथावरजीवहुं अभयदाणु । किज्जइ तरुणत्तणि तवपवित्ति वडत्तणि पुणु परियलइ सत्ति । जर पसरइ विहडइ देहबंधु
लोयणजुयलुल्लउ होइ अंधु। पब्भट्टचेट्छु गयरमणराउ
तरुणिहिं कोकिज्जइ हसिवि ताउ । डह थेरु सो वि किं णिब्वियारि दइवेण जि पंड उ बंभयारि । जीविज्जइ जहिं सो णिययदेसु तं भोयणु जं मुणिभुत्तसेसु । घत्ता-किं भवें पंडियगठवें लोउ असेसु णडिज्जइ ।
विउसत्तणु तं सुकइत्तणु जेण ण णरइ पडिजइ ॥८॥
घत्ता-लोगोंके नेत्र जहाँ भी पड़ते वे वहीं लगकर रह जाते। बुध-चन्द्र उस मुनीन्द्रके शरोरके अंगोंका वर्णन कौन कर सकता है? ||७||
उसकी वन्दना करके राजा सगर अपने मन में विचार करता है, हो न हो ये क्या देव हैं ? यह मनुष्यका स्वरूप नहीं है। अपना थोड़ा-सा मुंह खोलते हुए राजाने कहा, "हे मुनि, आप विरक्त क्यों हो गये ? बताइए आपने-अपने यौवनको वनके योग्य क्यों बनाया ?" यह सुनकर वह कपटी मुनि बोला, "क्या तुम पूर्णिमाके चन्द्रको नष्ट होते हुए नहीं देखते ? पहले चन्द्रमा भर जाता है, फिर खाली होता है, हे राजन्, क्या तुम बादलोंकी छायाको शाश्वत समझते हो ? तन, धन, और परिजन स्वप्नके समान हैं ? इसलिए त्रस और स्थावर जीवोंके लिए, अभयदान एवं योवनमें तपकी प्रवृत्ति करनी चाहिए। बुढ़ापेमें तो फिर शरीरको शक्ति नष्ट हो जाती है। बुढ़ापा फैलने लगता है । शरीरके बंध ढीले पड़ जाते हैं, दोनों नेत्रयुगल अन्धे हो जाते हैं । चेष्टाओंसे भ्रष्ट और रमणरागसे रहित बूढ़ा आदमी युवतियोंके द्वारा हंसकर तात पुकारा जाता है। वृद्ध आदमी दग्ध हो जाता है ( उसकी इन्द्रियचेतना नष्ट हो जातो है ) क्या वह भी निवृत्ति करनेवाला हो सकता है ? नपुंसकको तो दैवने ही ब्रह्मचारी बना दिया ? वहीं जीवित रहना चाहिए जो अपना देश है, भोजन वही हैं जो मुनिके आहारसे बचा हो।
पत्ता-बुद्धिके गर्ववाले भव्यके द्वारा समस्त लोक क्यों प्रतारित किया जाता है ? पाण्डित्य और सुकवित्व वही है कि जिससे मनुष्य नरकमें नहीं पड़ता ||८|| ८. १. A सरूउ; P सरूव । २. A P दरविहसियासु । ३. A मुणि; P मुणे । ४. P वइरग्गु । ५. A वणजोगु; P वणिजोगु । ६. A P सुठु पहुत्तणु ।
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